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________________ 36 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य शिवासखंड वर्म, संभवतः राजवंश के महत्वपूर्ण प्रथम नेता थे और विवध राजपरिवारों से वैवाहिक संबंध जोडा करते थे। प्रभावती, मृगेशवर्म की (455-80) महारानी कैकेय परिवार की राजकुमारी थी और मृगेशवर्म का पुत्र रविवर्म (485519) इसी रानी से पैदा हुआ था। मृगेशवर्म के चाचा राजा कृष्णवर्म प्रथम (43060) ने भी इसी कैकेय परिवार के राजकुमारी से विवाह किया था, और उसका पुत्र था विष्णुवर्म (460-90) / कोत्तिपेग्गिलि तथा एल्लाकेल्ल, विजयाम्बा द्वीप पर शासन कर रहे थे और ये दोनों कैकेय अन्वय (परिवार) से थे, जिसका उल्लेख लगभग छठी तथा सातवी सदी के हिरेगुत्ती तथा करोलि ताम्रपत्र के अनुसार, जिसका प्रारूप सिंह, सेनापति के पुत्र जिननंदी सेनापति, रविवर्म के सेवक चित्रसेन महाकेल्ला तथा पयगुंडपुर के स्वामी ने तैयार किया था जिसकी पहचान कारवार जिले में स्थित हैंगुंड से हुई। जिसका वर्णन कैकेयकुलसंभूत के रूप में किया गया है, जिसका कुलचिह्न सिंह था। चित्रसेन केल्ला, अंबुद्वीप अर्थात अंजदिव द्वीप के अभियान के दौरान दान का था। ये और इसके समान विवरण निश्चित ही एक जैसे वंशक्रम (उद्गम, स्त्रोत, मूल) की और उंगली निर्देश करते है, जिसपर आगे खोज-बीन करने की आवश्यकता है क्योंकि चालुक्यों के काल में इनकी भूमिका के स्वरूप की जांच-पड़ताल करनी जरूरी है। 4- उ) केल्ल ____ अप्रवासी केल्ल जैनों में विश्वास रखनेवाला योद्धा परिवार अपनी शाखाओं को अनेक नामों से फैलाने लगा। उन्होंने इन नामों को विभिन्न विशेषण से जोडा है जैसे, अरकेल्ल, इलकेल्ल, कलिकेल्ल, केसुगेल्ल, भटारिकेल्ल, मागुंडरकेल्ल, मुरसकेल्ल, महाकेल्ल, पयिदराकेल्ल, सरकेल्ल, सेब्याकेल्ल, सेवयकेल्ल, तथा सेयगेल्ल (नागराजय्य हंप: चन्द्रकोडे:1997-: 470-74) विशेषरूप से कैकेय राजा चित्रसेन ने लगभग छठी सदी के मध्य में होन्नवार ताम्रपत्र पर अपना वर्णन करते हुए स्वयं को केल्ल तथा महाकेल्ल कहा है। इसके सदृश उदयावर प्रदेश के आळुपाओं के पूर्वी रिकार्ड इस राजवंश को अरकेल्ल बताते हैं। दक्षिण केनरा में स्थित केल्लपत्तिगे केल्लों का परकोटा था। हबिडु के पास स्थित पलमिडी तथा केल्णगेरे का उल्लेख आदितीर्थ के रूप में होता है जो पूर्वी जैनों की तीर्थयात्रा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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