________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 35 अधिकारी थे जो मुख्यतया गोवा तथा कोंकण प्रदेश के प्रभारी थे। राजा काकुत्स्थवर्म (435-55) के शासन काल में भोज पहली बार नजर आते हैं, जिसने अपने जैन सेनापति को परवर्तियों के साहस कार्य, जिससे पूर्ववर्तियों की जान बच गयी थी की खातिर पुरुखेटक ग्राम दान में दे दिया था। ___ कर्नाटक देश के छोटे बड़े राजवंशों के इतिहास में आनेवाले, सम्मानित सेनापतियों की पंक्ति में श्रुतिकिर्ति (लगभग पाँचवी सदी के मध्य ) सबसे प्राचीन ख्यातनाम सेनापति रहा है। रोचक बात यह है कि संयोग से यह सुरक्षा अधिकारी जैन था। पुरुखेटक ग्राम-दान के संदर्भ में यह बात उल्लेखनीय है कि इस अनुदान का समय समय पर पुनःनवीकरण कर दिया जाता था। आदिकदंबों के राजा शांतिवर्म और उसके पुत्र मृगेशवर्म दोनों ग्राम दत्ति (ग्राम-दान) की नवीकरण किया करते थे और साथ ही साथ उसको उन्होंने जीवित भी रखा। पुरुखेटक ग्राम पुनरद्त्ती के रूप में फिर एकबार दामकीर्ति की माता को दान में दिया गया, स्पष्ट है कि दामकीर्ति श्रुतिकीर्ति का पुत्र ही था। पुनःनवीकरण की यह प्रक्रिया वहीं रुकी नहीं। बल्कि मृगेशवर्म (458) के पुत्र राजा रविवर्म के काल में भी जारी रही जिसने इस दान का पुनःनवीकरण किया और जयकीर्ति को सौंप दिया। जयकीर्ति, प्रतिहारी अथवा द्वारपाल अथवा राजा का विदूषक था। संभवतः जयकीर्ति दामकीर्ति का पुत्र था। ऐसा लगता है कि भोजों का उपनाम प्रतिहारी रहा होगा। रविवर्म के हलसि ताम्रपत्र पर एक और भोजक पंडर नज़र आते हैं। भोजक मुख्यतया आदि कंदंबों के सामंत थे। हालाँकि भोज चालुक्यों के युग तक भी चलते रहें। इसका प्रामाणिक विवरण उपलब्ध नहीं है। भोजक दामकीर्ति, मृगेशवर्म का सेनापति, एक लेखक भी था, उसने अपने अधिपति के तीसरे शासन वर्ष ई.स. 458 में देवगिरी शिलालेख लिखा था। यह राजा मृगेश द्वारा दान में दी गई 33 निवर्तनों के जमीन का प्राप्तकर्ता था फिर परवर्तियों ने वहाँ उसके पिता, काकुस्थवर्म के पुत्र शांतिवर्म की स्मृति में पलाशिका जिनालय का निर्माण किया। रज्जुकों, गामिकों तथा रठिकों की तरह भोजक अधिकारी वर्ग से संबंधित थे। जबकि वणिक तथा लेखक व्यावसायिक पद थे। 4. ई) कैकेय / केकय पूर्वी कदंबों के शासन में कैकेय का उनके सामंत राजा के रूप में उल्लेख है और दोनों परिवारों के मध्य वैवाहिक संबंध भी थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org