________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 33 है। प्राचीन तमिल, संस्कृत तथा प्राकृत कृतियों में (वर्तमान युग पांचवीं सदी) बाणों का संदर्भ आता है। इलंगों-अडिगल द्वारा रचित तमिल कविता शिल्पादिगारं में बणों का उल्लेख हुआ है। सर्वनंदी का लोकविभाग' (458 पांचवीं सदी)ब्रह्मांड दर्शन पर आधारित निग्रंथ को मूलतः प्राकृत में पाटलिक (तिरुप्पाटिरिप्पुलियूर अर्कोट जिले के उत्तर) में लिखा गया था। जिसमें बाणों के बारे में जानकारी दी गई थी। 800 साल के लंबे इतिहास में सातवाहनों से लेकर विजयनगर तक बाण सामंत थे। सामंतों के निर्गमन के बाद वे पल्लवों के प्रभाव में आ गए। पाँचवी सदी में मरुगरेनाडु तथा छठी सदी में पुदलनाडु राष्ट्र पर सातवीं सदी में तुरमार वेंगनूर विषय और आठवीं सदी में (गुत्ति) कैवारा विषय पर वे शासन कर रहे थे। कुछ समय के लिए बाणों को कदंबों की भी सहायता करनी पड़ी। जब वे मयुराश्रम (कदंबकुलका मूलपुरूष) से हार गए। किंतु शीघ्र ही बाण गंगों के प्रमुख सामंत बने। माधव प्रथम से लेकर गंगों के शासन के अंत तक, बाण उनके निष्ठावान सेवक बने रहें और उनसे सौहार्द बनाए रखा। बनवासी पनि सिर तथा गंगवाडी तोंबतअरुसासिरा की उक्ति के सदृश 950 में मुलबागिलु (कोलार जिला) के पुरालेख में बानरवाडि पनि सिर (अर्थात् बाणवाडी 12000) का उल्लेख किया गया है। - बादामी के चालुक्यों के शासन के दौरान बाणों ने स्वेच्छा से गंगों को सहायता पहुँचायी जो उनके पहले राजा थे। उल्लेखनीय है कि वे पुलकेशी द्वितीय के साथ खडे रहें जब वह चालुक्यों के सिंहासन पर स्वयं को स्थापित करने के लिए मंगलेश से लडा था जो कि उसका विधिसंगत दावा था। पुलकेशि को अपने सैन्य का समर्थन देकर बाण उसके दक्षिण के अभियान में जुड गए। फिर वे विक्रमादित्य प्रथम की सहायता के लिए दौड पड़े जब परवर्तियों ने पल्लवों के विरुद्ध युद्ध घोषित किया। बाणों का प्रमुख भूविक्रम बाण विद्याधर बडे जोश से लड़ा और कई स्थानों पर पल्लवों के दलों को धूल चटाई महाभट विक्रमादित्य गौंड की निर्भीकता से खुश होकर बाण विद्याधर ने उसे कोलार जिला तथा तालूका का एक गाँव बिदरूस बशिश में दे दिया। जब राष्ट्रकूटों ने चालुक्यों का दमन किया तब बाणों ने अपनी सार्वभौमिकता दिखाई। जबकि इसके बिल्कुल विपरीत शाही राष्ट्रकूटों के काल में गंगों तथा बणों के बीच सौहार्द खत्म हो चुका था। नंदी में स्थित भोगनंदेश्वर मंदिर बणों का उत्कृष्ट स्मारक है। बन राजा की पटरानी रत्नावती द्वारा इस महान मंदिर का शिखर बनवाया गया था। राष्ट्रकूटों के पतन के बाद गुलबर्गा जिले के काळगी विभाग के खांडव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org