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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 29 था। सामंतों ने कई बार ऐसा महसूस किया कि उनका अलिप्त रहना असंभव है और राजनीतिक लडाई झगडे की दलदल में खींच लिया जाता था। ___मांडलिक तथा सामंत क्रमशः महामांडलिक तथा महासामंत के छोटे रूप ही थे। अंग्रेजी के रायल, ड्युक, पालटिन, आदि शब्द चाहे प्रशासनिक प्रमुख का अर्थ देते हैं किंतु इनमें से कोई भी शब्द मांडलिक का सही अर्थ नहीं ग्रहण कर सकता। फिर भी किसी तरह इतिहास में इन शब्दों का प्रयोग होता आया हैं और आज तक वे शब्द प्रयोग में हैं। ___ मंडल, विषय तथा नाडु भी एक-समान अर्थ देते हैं और उनकी तुलना आधुनिक जिले की परिकल्पना के साथ की जा सकती है। तथापि मंडल, विषय तथा नाड का सीमा क्षेत्र छोटा-बड़ा हो सकता है। विषयाधिकरण उपनाम विषयाधिपति मंडलिपति के सादृश्य था। बेळवोल विषय तथा सांतळिगनाडु चालुक्य साम्राज्य का ही हिस्सा था। देहात प्रशासन की छोटी सी ईकाई गाँव था और ग्रामभोगिक (गामुंड तथा करणिक के समान) इस इकाई का प्रभारी था। महाजनों की सामूहिक इकाई पर हर समुदाय के बुजुर्गों से बनी थी इसमें व्यापारी संगठन भी मिला था जो लोगों की सुरक्षा तथा कल्याण का वादा करता था। * युद्ध तथा शांति के दौरान चालुक्यों, सामंतों तथा मांडलिक ने अपने स्वामियों के प्रति निष्ठा रखी और सहयोग भी दिया। चालुक्यों की राजप्रतिष्ठा का अधिग्रहण और पुनःअधिग्रहण सफलता से प्राप्त करने का रहा है। तत्कालीन कर्नाटबल की . शक्ति इतनी तेज और तीक्ष्ण थी कि उसका अनंत और अजेय कहकर वर्णन किया गया है। इसके लिए सामंति दलों की भूमिका को धन्यवाद देना होगा। उन्होंने नए उदीयमान साम्राज्य को फूलने फलने हेतु एक सुरक्षित छत्र दिया। सामंत राजाओं के. दलों ने शाही चालुक्यों की सेना का जो हरावल (सेना) तैयार किया वह काफी बुद्धिग्राह्य था। अतः उनकी भूमिका की पहचान करना आवश्यक है और एक छोटी सी बात को रेखांकित करना हो तो यही कि उस युग के सभी सामंतों की राजभाषा कन्नड़ थी और यह भी नोट करना आवश्यक है कि अधिकतर सामंत जैनधर्म में विश्वास करते थे। 4 अ) आळूप सामंत राजवंशों तथा प्राचीन योद्धा आळुपों ने आळुवखेड या तुळुनाडु (दक्षिण केनरा) प्रदेशों पर चौथी शताब्दि के पूर्वार्ध से लेकर चौदहवीं के उत्तरार्ध तक शासन किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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