________________ 30 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य यह राजवंश इनसे भी बहुत पुराना है; कारण, ग्रीक भूविज्ञानी (150) ने आळुवखेड का ओलोखोयर के नाम से उल्लेख किया था। इसके अलावा पशुपति, प्रसिद्ध हल्मडि में उत्कीर्णित शिलालेख में जिसका नाम आता है, आळुपागण से ही जुडा था जो कि कदंबों पर आश्रित था। __चालुक्यों के सामंतों में आळुपों ने उतना ही सम्मान का स्थान पाया जितना कि गंगों ने राष्ट्रकूटों के शासनकाल में पाया था। चित्रवाहन प्रथम (680-730) चालुक्यों के राजतंत्र की संपन्नता का साधन था। चालुक्य राज्याभिवृद्धि हेतुभूतः। शिग्गाव से ताम्रपत्र पर उसके उन्नत व्यक्तित्व का इस प्रकार वर्णन किया गया हैसकल लोक विदित महाप्रभावः। उसके अनन्य असाधारण त्याग और औदार्य के कारण चित्रवाहन का साम्राज्य पर विशेष प्रभाव था। महाराजा विजयादित्य ? के युद्धों में उसके सामंत चित्रवाहन के ओजस्वी भूमिका की भूरी भूरी प्रशंसा शिलालेखों में अंकित है। स्वकरतल विधृतनित्रिशं-संघात-वित्रस्त-विशिर्यमाणानेकरिपुनृपति-मत्त-मातंग संघातः ने मत्त गजों अर्थात शत्रु राजाओं को अपने चमकते खड्ग से पराजित किया। जिससे चित्रवाहन को राजा का दामाद बनने का सम्मान . दिया गया था। शिग्गाँव का ताम्रपत्र चित्रवाहन का वर्णन इस प्रकार करता हैं, “पां तमलत कुलं अलंकुरवाण" अर्थात जिसने निर्मल पाट्टकुल को सुशोभित किया। मानक - ऐतिहासिक विवरण के अनुसार भूताल, पाट्ट वंश परंपरा के जो गोवा, कर्नाटक और केरल समेत पश्चिमी घाट पर विशेष रूप से फूली-फली इस पर विस्तार से विचार करने की आवश्यकता है। इतिहासकार मानते हैं कि उपर्युक्त राजवंशों ने दक्षिण केनरा में अळिय-संतान-कट्ट तथा केरल में मरुमकत्तायम प्रथा की शुरूवात की। भले ही उनकी वंश परंपरा पर रहस्य की चादर ओढा दी गई हो फिर भी उनका क्रम निम्नलिखित है (जय) भूतल पांडूय -78-152 विद्यम्न पांडूय-153-229 वीर पांडूय -230-62 चित्रवीर्य पांडूय -263-81 ' देववीर पांडूय-282-316 जयवीरा पांडूय-317-43 उपर्युक्त सूची में चित्रवीर्य और वीर पांण्ड्यु के नाम आळपाओं के समान वंश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org