________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 25 पाया और संजोया था वह सब ध्वस्त हुआ और लगभग दो सौ साल की लंबी अवधि के लिए वातापी राजा की दीप्ति को ग्रहण लगा। किंतु राष्ट्रकुट तो अंधेरे में घात लगाकर बैठे थे अपने राजनीतिक पांडित्य तथा जोश से प्रतिघात करने योग्य अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे और राष्ट्रकूटों से एक गंभीर ऐसा वार हो ही गया। राजनीतिक होड़ में राजधानी पर कब्जा करने, उसकी कलई करने तथा उसका कायाकल्प करने तथा स्वतंत्र होने के लिए दंतिदुर्ग ने चालुक्यों को कुचल ही दिया। राष्ट्रकूटों के राजकुमार दंतिदुर्ग ने (735-36) विक्रमादित्य द्वितीय से उसके प्रतिष्ठित बिरुद पृथ्वीवल्लभ तथा खडगवलोक छीन लिए गए। नवसारी तथा बादामी की प्रमुख शाखा के चालुक्यों का दमन किया, कीर्तिवर्म को हताश किया। जाहिर है कि आवश्यकता कानून नहीं जानती। जब राष्ट्रकूटों का सूरज चमक रहा था तभी फसल भी काटनी आवश्यक थी। अतः दंतिदुर्ग के चाचा कृष्ण प्रथम ने (756-74) कीर्तिवर्म को हराया और चालुक्यों की राजधानी को लूटा। . उचित दंड देने हेतु, प्रतिकार के लिए द्वारों को खुला देखकर उन्होंने बादामी चालुक्यों का दमन करने के लिए पुरुषोचित आघात किया और महान राष्ट्रकुट साम्राज्य के लिए शुभ शकुन ही हुआ। आठवीं सदी के उत्तरार्ध में बादामी का प्रभाव खत्म हुआ और उनके सारे राजतंत्र को नए साम्राज्य में विलीन कर दिया गया जिससे दक्षिण में एक अनन्य महासाम्राज्य का निर्माण हुआ। . कीर्तिवर्मन द्वितीय (745-87) चालुक्यों का अंतिम प्रतिनिधि शासक था। उसके शासन के अंत में राष्ट्रकूटों ने बाहुबल जुटाया था। दंतिदुर्ग ने यह सिद्ध किया कि चालुक्यों का मुर्गा अब कभी नहीं लडेगा। उसने अपना लोहा सिद्ध किया और गुर्जर, कोसल तथा कलिंग राजाओं का दमन किया। इस प्रकार दंतिदुर्ग ने कीर्तिवर्मन के हाथ बांधे और चालुक्यों की राज्यश्री छीनकर, उनका राजसिंहासन खाली कर, स्वयं को प्रभुसत्तासंपन्न शक्तिशाली राजा के रूप में घोषित किया। ___ राष्ट्रकूटों के लिए अंधेरे से निकलकर समृद्धि तक पहुँचने के वे प्रारंभिक दिन थे अतः चालुक्यों को उपेक्षित राजनीतिक अवस्था में प्रतीक्षारत रहना लाजमी था। चालुक्यों का अध्याय यहीं खत्म नहीं हुआ था। कुछ समय के लिए भाग्य का चक्र उलटा घूमा था और विडंबना यह थी कि फिर उन्हें अपनी बारी के लिए लगभग दो शताब्दियों तक अज्ञातवास में रहना पड़ा। तथापि चालुक्यों का राजनीतिकसामाजिक व्यक्तित्व एकदम से खत्म हुआ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org