________________ 26 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य उस समय चालुक्य साम्राज्य दक्षिण के विशाल साम्राज्यों में से एक था। वे उत्कृष्ट ऐसे संवर्धक कर्णधार थे और यह उस जमीन की संस्कृति की जैसे देन थी जो राष्ट्रकूटों को प्रमुखता से विरासत में मिली थी। सकल कर्नाट देश उनके उदार श्वेत छत्र के नीचे लाया गया। कला, शिल्पकला तथा सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र उनका चिरऋणी रहेगा। उनकी उपलब्धियाँ उनके प्रभुसत्ता की सांस्कृतिक धरोहर ही रही। उनके प्रश्रय में चालुक्यों ने जैन संघ तथा शिल्पकला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। सर्वदेशिय सांस्कृतिक केंद्र के प्रतिकूल में जहाँ कला, शिल्पकला तथा साहित्य का प्रचुर मात्रा में संरक्षण हो रहा था और जैन धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों का भी एक साथ विकास हो रहा था, ऐसे समय सहिष्णुता बनाए रखने में चालुक्यों का बहुत बडा हाथ था। पुरातात्विक तथा शिलालेखिय साक्ष्य यही बताते हैं कि तत्कालीन आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा जैनों से समाविष्ट था। अधिक मात्रा में उपलब्ध शिलालेखिय तथ्य यही बताते है कि इस अवधि में कला, शिल्पकला तथा साहित्य को जैनियों ने विशेष रूप से प्रोत्साहित किया। उत्कीर्णित लेखों में राजतंत्रों के शासन का हमेशा उल्लेख किया गया है जो इन स्मारकों से संबंधित थे। राजधानी से दूर मंदिर का उत्तरदायित्व हमेशा स्थानीय मांडलिकों, उनके परिवारवालों तथा व्यापारियों पर था। जैन कला का विस्तार अभिव्यक्ति की एक नयी . * धारा का अन्वेषण कर रहा था और मूर्तिकला की परंपरा की रचना कर रहा था। जैन कला, राज परिवारों के संरक्षण में पोषित होकर तीव्र गति से विकसित हो रही थी और चालुक्य के साम्राज्य के नगरों तथा शहरों में रच-बस गई थी। भारतीय साँचे में जैन शिल्पों तथा प्रतिमाओं ने आंदोलन का कायाकल्प किया। आदि कदंबवाडी तथा गंगवाडी को जब साथ साथ रखते है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन शिल्पों मे चालुक्य अत्यंत समृद्ध थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org