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________________ 24 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य विक्रमादित्य द्वितीय का पुत्र कीर्तिवर्म (745-57) तथा रानी लोकमहादेवी चालुक्य राज सिंहासन के उत्तराधिकारी बनें। वातापी के शासकों की पंक्ति में आने वाला वह आखरी शासक था। उसने युवराज के रूप में पल्लवों पर आक्रमण के दौरान अपनी वीरता सिद्ध की थी। नंदिवर्म को उसने ऐसी धूल चटायी कि उसे भागने पर विवश होना पड़ा। फिर उसने हाथी तथा जवाहरात आदि अपने कब्जे में ले लिये और उसे अपने पिता को उपहार स्वरुप दिया। __उसके शासन काल का प्रथम दशक शांतिपूर्ण था। उसके बाद जो भी हुआ वह उसकी प्रभुसत्ता के विरुद्ध हआ। जिससे साम्राज्य का खात्मा ही होने लगा। पल्लवों के विरुद्ध लगातार युद्धों के दुराग्रह से राजनीतिक तेज ही नष्ट हो गया। दुश्मन, जो अंधेरे में घात लगाकर बैठे थे और अवसर की ताक में थे, से निर्बल राजतंत्र का शोषण होने लगा। आळूप राजपाल आलुवरस द्वितीय ने विद्रोह किया और पल्लवों के नंदिवर्मन से हाथ मिलाकर, उदयचंद्र के नेतृत्व में सेना अभियान में सहभागिता की। उसके शासनकाल के दौरान जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, अण्णिगेरी में जिन को समर्पित मंदिर बनाने को उत्प्रेरित किया। कीर्तिवर्म द्वितीय (744-55) के कार्यकाल में धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियाँ काफी मात्रा में हुआ करती थी। गंग के मांडलिक श्रीपरुष नै कीर्तिवर्म के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई थी। स्वामी तथा सेवक ने लगातार चार बार छापा मारा पर चौथी बार का छापा अशिष्ट सिद्ध हआ। अब विरोधियों की बारी थी और वे भी जैसे को तैसा की सीख देने के लिए तैयार थे। वेणबै के पं / राजा मारवर्मन राजसिंह प्रथम (730-65) ने चालुक्यों की सेना दलों को पछाड दिया। लेकिन दिलचस्प बात यह थी कि यह मारवर्मन राजसिंह के पुत्र जटिल परांतक नेडुंजडियन (756-815) का विवाह गंग की राजकुमारी के साथ संपन्न हुआ और एक मैत्रीपूर्ण वातावरण का निर्माण हुआ। किंतु फिर भी आठवीं सदी के मध्य में राजनीतिक रिक्तता को देखा गया। चालुक्यों की इच्छानुसार जब सबकुछ चल ही रहा था कि तभी आठवीं सदी के उत्तरार्ध में एक और स्वदेशी शक्ति के पुरुत्थान का संकेत होने लगा। राष्ट्रकूटों की मानपुर शाखा को चौथी तथा आठवीं सदी के मध्य प्रारंभिक सफलता तो मिली किंतु वे टिककर नहीं रह पायी। इसका कारण था नलों तथा मौर्यों की दुराग्रही चुभन तथा चालुक्यों का भीषण आक्रमण। साम्राज्य ने जो यश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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