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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 23 हाथी का बैनर, और रुबी में जडे कई मूल्यवान रत्न छीन लिए। विजेता चालुक्य राजा ने पराजितों से विशाल हृदय से व्यवहार किया। उसने राजसिंहेश्वर मंदिर तथा लोगों की लूट का सारा माल वापस कर और पल्लवों का राजसिंहासन नंदिवर्म के लिए सुरक्षित कर वह बादामी वापस लौटा। पल्लवों की राजधानी कांचि के कैलासनाथ मंदिर के एक स्तम्भ पर इस श्रेष्ठ कार्य का उल्लेख किया गया है, जिससे चालुक्यों का कद और भी अधिक उँचा उठा। विक्रमादित्य का पल्लवों के खजाने को वापस लौटाने का उदारता पूर्ण कार्य एक ज्ञानी शासक होने का ही जीवंत उदाहरण है। इसके बाद फिर कीर्तिवर्म ने पल्लवराजा के विरुद्ध युद्धाभियान किया और उसमें उसने भी विजय प्राप्त की। किंतु परवर्तियों को शांति स्थापित करने के लिए हाथी, सुवर्ण, तथा जवाहरातों की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी। अवनिजनाश्रय पुलकेशि, गुजरात चालुक्य वंश के राजा तथा विक्रमादित्य के चाकरों ने ताजिकों (अरब) को ' अरबों को दबाने के लिए, मजबूर किया तथा दक्षिण में घूसने से रोक दिया। विक्रमादित्य के युग कल्प को मंदिरों की दीवारों पर उत्कीर्णित किया गया था। उसने खंड-स्फुटित-जीर्णोद्धार में विशेष रुचि ली थी। . विजयादित्य का पुत्र तथा उत्तराधिकारी विक्रमादित्य द्वितिय (733-44) ने ई.स. 733-34 में पुलिगेरे के धवल जिनालय को अनुदान दिया था। पुलिगेरे साम्राज्य का एक महत्वपुर्ण क्षेत्र, जैन मंदिरों का केंद्र स्थान और समृद्ध मंदिर था। उनमें से कुछ प्रमुख जिनमंदिरों का उल्लेख शिलालेखों में हुआ है। परवर्ती चालुक्यों के शासन काल में चोळों द्वारा आनेसेज्जया बसति तथा धवल जिनालय समेत सभी जैन मंदिरों को नष्ट किया गया था। विद्यमान दो जैन मंदिर, चाहे जिनके नाम प्राचीन क्यों न हो पर संभवतः प्राचीन जैन मंदिरों की रचना का ही प्रतिरूप है, जिनका निर्माण ग्यारहवीं सदी के मध्य किया गया था। पुलिगेरे बेलवोल 300 की राजधानी थी। उसके पास का ही एक शहर अण्णिगेरे भी महत्वपूर्ण शहरों में से था, जहाँ जैनों का उपनिवेश था। 751-52 के एक स्तंभ पर उत्कीर्णित लेख में जेबुरळगेरि के अधिकारी कलिमय्या द्वारा अण्णिगेरे में एक चैत्य, जैनमंदिर के बनवाने का उल्लेख है। राजा विक्रमादित्य ने जब रक्तपुर में पड़ाव डाला था तब उसने जिन की प्रार्थना करने के लिए जमीन दान में दी थी। रक्तपुर (अर्थात किसुवोळल अर्थात पट्टदकल) जैनों के महत्वपूर्ण प्रार्थना मंदिरों में से एक है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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