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________________ 22 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य पर सौंपा गया था। विनयादित्य ने ई.स.709 में आनेसज्जया बसति तथा ई.स. 729 में जैन धर्मगुरु उदयदेव पंडित जी को अनुदान दिया था। , कुल मिलाकर विनयादित्य का शासनकाल (681-96) समृद्ध तथा शांतिपूर्ण था। उसके शासनकाल में संस्कृत, कन्नड, तेलुगु भाषा को प्रोत्साहन मिला। चालुक्य राजवंश में तो यह आम बात थी कि पिता के युद्धाभियान में नाते रिश्तेदार सहयोग एवं सहायता प्रदान किया करते थे। विक्रमादित्य प्रथम के पुत्र तथा प्रपौत्र क्रमशः विनयादित्य और विजयादित्य ने परवर्ती विजयों में भाग लिया। इसी प्रकार विजयादित्य और उसके परमवीर पुत्र विक्रमादित्य द्वितीय ने सहायता की थी और परमेश्र्वरवर्मन द्वितीय को पराजित किया और फिर कांचिपुर पर. आक्रमण किया। ___ वास्तव में राजा विजयादित्य ने (696-733) ई.स. 708 में आनेसेज्जया' बसती, जिसकी खोज उसकी छोटी बहन ने पुलिगेरे में की थी, को अनुदान दिया था जिसका उल्लेख किसी एकबंध में किया गया था। विजयादित्य की प्रिय उपाधि निरवद्य पंडित के पार्श्व में भी जैनधर्म की ही पृष्ठभूमि थी। निरवद्य पंडित उपनाम उदयदेव पंडित विनयादित्य के आध्यात्मिक गुरु थे। 729 में रणरसिक विजयादित्य ने विरवद्य पंडित को अनुदान दिया था। इस प्रकार पिता पुत्र दोनों ने अपने अपने काल में जैनमुनि तथा विद्वान पंडित निरवद्य को गौरव प्रदान किया था। राजकुमारों की तरह चालुक्यों की राजकुमारियों ने भी जैन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए विशेष सहायता पहंचायी थी। विक्रमादित्य द्वितीय (733-44) 'वीरसूर्य' ने पल्लवों के विरुध्द तीन युद्ध लड़े। जब वह युवराज था तब उसने परमेश्वरम की राजधानी कांचि नगरी पर गंग राजा श्री पुरूष के पुत्र एरेय्या (एरेयप्पा) की सहायता से आक्रमण किया। विछस्डे के रक्तपिपासु युद्ध में श्रीपुरुष ने परमेश्वरवर्मन को मारकर 'श्वेत-छत्र' के साथ-साथ 'पेरमानडी' (पवित्र पादुका) यह शाही बीरुद छीन लिया था। जो गंग राजा की अत्यंत प्रिय उपाधि में से एक थी। पेरमानडी और इरेयातियडी का अर्थ एक समान है। चालुक्यों ने अपना विनाशी प्रतिरोध कायम रखा और अपने दलों को तुंडकविषय के अंदर जाने के लिए उकसाया। विक्रमादित्य ने अपने सामंत गंग श्री पुरुष के साथ मिलकर पल्लवों के अधिपत्य को छेदते हुए तथा शत्रु-देश को सफलता से रौंदते हुए नंदिपोतवर्मन पल्लवमल्ल को ई.स. 740 के आक्रमण में पराजित किया। अपनी जीत को मुकुट पहनाने के लिए उसने पराजित पल्लवों से कटुमुख-वादित्र तथा समुद्रघोष की राज मुद्राएँ, दो असाधारण संगीत वाद्ययंत्र, खटवांग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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