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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 21 ऊरैयुर कोयिल (देवालय) का जो प्रमुख उपासक था उसे उरुयुरु श्री कोयिल नायनार कहा जाता था। विक्रमादित्य के शासन काल के दौरान चालुक्यों की गुजरात शाखा स्वतंत्र रूप से कार्यरत होने लगी। गुजरात के राज्यपाल, जयसिंह ने, विक्रमादित्य के छोटे भाई वज्जध अय्या वज्रथ उपनाम शिलादित्य तृतिय को युद्ध में विफल किया। जिससे चालुक्यों की शान में चार चाँद लग गए। किंतु इन सारी सफलताओं में कुछ प्रतिकूलताएं भी थीं। विक्रमादित्य को आक्रमण का कडुवा अनुभव मिल चुका था। ई.स. 678 में पल्लव राजा परमेश्वर्मन प्रथम ने चालुक्यों की सेना को खदेडकर अपने सेनापति परंजोति शिरुत्तंडर को भेजा। जो सीधे चालुक्यों की राजधानी की ओर बढा और उसने वातापी को लूट लिया। चालुक्यों के राजकुमार विनयादित्य और विजयादित्य, साहसी गंग राजा भूविक्रम की सहायता से चिरुत्तोंडर को पीछे हटाने में सफल हुए और अच्छा खासा लूट का माल लेकर आखिरकार कांचि लौटे। . विनयादित्य (681-96) को ई.स. 678 में युवराज बनाया गया और वह 681 में विधिवत सिंहासनारुढ हुआ। राजाओं के राजा विक्रमादित्य ने दक्षिण और उत्तर में आक्रमण किए और समुद्रपार द्वीपों तथा प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया। बाणों, गंगों, और शेद्रकों के समर्पण को उसने सुरक्षित रखा, जिन्होंने उसके प्रति अपनी निष्ठा दिखाई थी। गंगा-यमुना की प्रतिमा तथा पाली-ध्वज का धारक होने पर उसे बड़ा गर्व था। सत्याश्रय, श्री पृथ्वीवल्लभ, महाराजाधिराज परमेश्वर तथा श्री वल्लभ आदि राज उपाधियाँ उसे बहुत प्रिय थीं। अपनी इस विजय में उसे अपने पुत्र राजकुमार विजयादित्य तथा भाई जयसिंह का अच्छा साथ मिला। ___ विनयादित्य का शासनकाल समृद्धि तथा शांति से परिपूर्ण था। कमेर (कंबोडिया), पारासिक (परशिया) तथा सिंहल राजाओं ने उसके सामने अपनी अधीनता का प्रस्ताव रखा। आळुपों तथा सेंद्रकों ने उसकी सत्ता स्वीकारी और वे उसके मांडलिक बने। विक्रमादित्य का जब राजाभिषेक हुआ तो उसकी आयु काफी हो चुकी थी। विक्रमादित्य, जिसमें अपने पिता की सहायता की थी तथा उत्तर भारत के अभियान में अपने शौर्य का प्रदर्शन किया था, बादामी के शासन में उसने अपेक्षा से अधिक लंबी पारी खेली थी। - निरवध उपनाम उदयदेव पंडित जैसे जैन आचार्य विक्रमादित्य के आध्यात्मिक मार्गदेशक थे। उसकी पुत्री तथा आळुपा के राजकुमार की पत्नी राजकुमारी कुंकुम महादेवी जैन धर्म की क र अनुयायी थी। पुलिगेरे आनेसज्जया बसति का भार उस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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