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________________ 20 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य _इस बार प्रभुसत्ता राजर्षी की कुदृष्टि जो तेरह वर्षों तक पल्लवों की जंजीरों में जकड़ी थी, चालुक्यों पर पड़ी। शेरदिल विक्रमादित्य प्रथम, अपने नाम के समान अपने शाही अश्व चित्रकंठ पर आरुढ होकर और हाथ में चमकती राज-तलवार उठाकर, चालुक्यों की जीवन-दीप्ति को अनुप्राणित करने लगा। विक्रमादित्य ने अपने पिता द्वारा कठिनाई से अर्जित साम्राज्य की रक्षा के लिए पांड्रयों, कळभों, चोळों, चेरमाओंको, केरळास को छिलकर रख दिया। उसने दक्षिण समुद्र तट पर जयस्तंभ खड़ा कर दिया। उसने अपने छोटे राज भ्राता जयसिंह वर्मन को दक्षिण गुजरात, लाटदेश के वायसराय के रूप में नामांकित कर अपनी राजनीतिक चेतना तथा बोध का परिचय कराया। बाद में यही धारा एक स्वतंत्र शाखा के रूप में विकसित हुई। विक्रमादित्य प्रथम (651-81) को युवराज बनाने के पीछे पुलकेशि प्रथम की दूरदर्शिता तथा गतिशीलता थी। उसकी माता गंग राजा दुर्विनीत की पुत्री थी। छठी सदी के अंतिम दशकों में उस पर कोगलि के जैन मंदिर के निर्माण का भार सौंपा गया। बाद में दसवीं सदी में इन्द्रनंदी ने उसे पुनः बनवाया। सातवीं सदी के प्रारंभ में पुलिगेरे में दुर्विनीत के पुत्र मोक्कर उपनाम मुष्कर के गुणांकन के लिए जैन मंदिर का निर्माण किया गया जिसे बाद में मोक्कर बसदी (610) नाम दिया गया। मोक्करा पुलिगेरे तीर्थ का एक उत्साही भक्त था। * विक्रमादित्य प्रथम ने आक्रमण का नेतृत्व किया और पड़ोसी राज्य कांचिपुरम की ओर कूच की तो परमेश्वरवर्मन प्रथम ने अपने आश्रयस्थल से पलायन किया। अपने स्थान और शासन को समेकित करने के लिए विक्रमादित्य ने कावेरी नदी के तट पर बसे ऊरैयूर पर अपना पड़ाव डाला। विळन्दे के ऐतिहासिक युद्ध में भूविक्रम ने अपने शत्रु परमेश्वरवर्मन से मूल्यवान माला जीत ली जिसमें उग्रोदय रत्न जड़ा हुआ था। निर्भीक पल्लवों ने विक्रमादित्य तथा उसके पुत्र विजयादित्य के नेतृत्व में आनेवाली चालुक्य सेना का पुनः एक बार सामना किया। विजयश्री ने परमेश्वरवर्मन पर कृपा की और उसने पल्लवों के सीमा क्षेत्र उरुयुरु त्रिरचुरपल्ली के पास पेरुवला नेल्लुरु में उन पर दृढता से पराजय थोंप दी। पल्लवों पर चढाई के दौरान, विक्रमादित्य प्रथम, कावेरी नदी के किनारे पर स्थित जैनों के प्रसिद्ध स्थान उरुयुरु में पड़ाव डाले बैठा था। ऊरैयुर में स्थित अरहन मंदिर के नाम थे, श्री कंडपळ्ळि निक्कंड कोश्टम तथा निक्कंडपल्ली। अर्थात निग्रंथों का गाँव। इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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