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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 19 नेलकुण्ड तथा कर्नूल ने पुलकेशि द्वितीय के प्रियपुत्र आदित्यवर्मन को 'श्री पृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर' की उपाधि प्रदान की। यही इस बात का समर्थन करता है कि वह सिंहासन का उत्तराधिकारी था। हालाँकि विक्रमादित्य अपने पिता द्वारा चयनित उत्तराधिकारी था उसे सिंहासन के लिए नामांकित किया था। यद्यपि विक्रमादित्य ने स्वयं को सम्राट घोषित कर अपने दावे की बाजी लगाई थी और अपनी पटुता के साथ 'सर्वान दायादन जित्वा'... अर्थात अपने प्रतिस्पर्धियों को कुचलकर विजय प्राप्त करते हुए, हर दिशा में अपने विरोधियों का दमन करते हुए वह निकल पड़ा था। 'रिपु नरेन्द्रज्न दिशि दिशि जित्वा'। आलमपुर ( आंध्र प्रदेश) के शिलालेखा में उचित ही कहा गया है कि; 'वंशे महति विख्याते राजा राजीव लोचनः नामना श्री विक्रमादित्यः क्षीरोद ज्व चंद्रमाः' (अर्थात्, महान तथा प्रख्यात वंश में जन्मा राजीवलोचन(नीली आँखोंवाला) ' विक्रमादित्य ऐसा था मानो क्षीर समुद्र से किसी चंद्रमा ने जन्म लिया हो।) ___ यद्यपि परदा ऊपर उठ गया था, और यह सही भी है कि आक्रमणकारी दलों ने वातापी को परास्त किया और पूरी तरह से लूटकर, जलाकर भस्म कर दिया था। राजधानी का सर्वनाश होने के बावजूद चालुक्यों का साम्राज्य समूल नष्ट नहीं हुआ था। उनकी विध्वंसक पराजय मात्र अस्थायी थी। अधिकतर चालुक्यों के क्षेत्र से शत्रुसेना को पीछे हटा दिया गया था। शत्रुसेना के पीछे हटने के बाद, विक्रमादित्य, सबसे पहले तो शहर को पुनर्वासित करने तथा एक नए अध्याय का प्रारंभ करने हेतु, अपनी राजधानी वापस लौटा। बादामी में विध्वंस से जो रिक्तता निर्माण हुई थी उसे विक्रमादित्य ने भर दी। प्रियतनु पुलकेशि प्रथम ने बादामी पर घिरे काले बादलों को भगा दिया और चमकते सूर्य के समान वह उठ खडा हुआ। भाग्य भी साहसियों का साथ देता है। ईश्वरीय अनुकंपा, साहस तथा बल पर विक्रमादित्य अपने कोश से बाहर निकला। उसके पास आकांक्षा थी और कौशल था। अपनी छोटी तथा सशस्त्र चतुर्दलिय सेना, छोटे भाई जयसिंह वर्मन तथा तीसरे पत्र पुलकेशि का सहयोग तथा अपने नाना गंग राजा 'दुर्विनीत' के सहयोग तथा सहायता से विक्रमादित्य पल्लवों से अपने कुलबैर का प्रतिरोध लेने में सफल हुआ। यह प्रत्याघात मात्र प्रतिरोध लेने के लिए ही नहीं था। बल्कि अपने विशाल साम्राज्य की प्रतिष्ठा को पुनः प्रतिस्थापित करना भी था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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