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________________ 14 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य सामने आयीं। हर मोर्चे पर उसे समेकित करने की आवश्कता को महसूस कर पल्लवों ने सबसे पहले अपनी सेना में प्रेरणा के प्राण फूंके। महेन्द्रवर्मन का प्रथम पुत्र बहुप्रतिभाशाली नरसिंहवर्मन प्रथम महामल्ल (630-68) ने अपने पिता की पराजय का मूंह-तोड जवाब देने के लिए युद्धाभियान की योजना बनायी। उसने युद्ध की गहरी चाल चली। ऊँची छलांग लगाने के लिए पहले वह पीछे हटा. और फिर उचित दंड देने के लिए नरसिंहवर्मन ने अपनी चतुर्दलिय सेना से चालुक्यों के प्रदेश पर घोर आक्रमण किया। उसने अजेय विजेता पुलकेशि का विनाश किया और बादामी को निष्ठुरता से छीनकर स्वयं 'वातापीकोण्ड' बन गया। ... अपनी विजय पर अतिहर्षित होकर पल्लवों की सेना ने बादामी को जला दिया। युद्धकाल में आग लगाना, जलाना किलों तथा राजधानी के शहरों, मंदिरों आदि को नष्ट करना उन दिनों आम बात थी। राष्ट्रकूटों तथा चालुक्यों की राजधानियाँ क्रमशः मळखेड और कल्याण जलायी गयी थीं। इसी वजह से अथवा अपनी सुरक्षा के लिए राजा अपनी राजधानी का क्षेत्र बदला करते थे। चोळराज राजेन्द्र प्रथम ने अपनी राजधानी गंगाईकोण्डा कोलापुरम भी वर्तमान युग 1042 में बदली थी। उसके विरोधी आहवमल्ल त्रैलोक्यमल्ल सोमेश्वर प्रथम ने भी अपना निवास मलखेड़ से निकालकर कल्याण में बना लिया था। पिरियाल, मणिमंगल और सूरमार के रक्तपिपासू युद्धों में चालुक्यों की सेना ने पल्लवों की महान सेना के सम्मुख समर्पण किया। अब तक अपनी सेना को चारों खाने चित्त देखकर, भयभीत प्रजा को रोते देखकर पुलकेशि एकदम निस्तेज हो गया। अपने प्रिय शहर बादामी तथा किले को भस्मीभूत देखकर उसके दुख की कोई सीमा नहीं रही। उसने प्रतिकूल पिरिस्थितियों का अंत तक सामना किया पर व्यर्थ। अंत तक प्राणों पर खेलकर लडते हुए उसने आखिर वीरगति प्राप्त की। उसने सम्मान के अलावा सब कुछ खो दिया था। अब समय नरसिंहवर्मन के हक में था। उसने अपनी अभूतपूर्व विजय का भरपुर आनंद उठाया और (ई.स.642 में) वातापीकोण्ड यह उपाधि अपनी योग्यता के बल पर अर्जित की। अपनी विजय के स्मरणार्थ उसने अपने किले की दीवार पर जयशासन उत्कीर्णित किया था। . ___ पुलकेशि का प्रदीप्त नवयुग वर्तमान युग ई.स. 642 में समाप्त हुआ। राजनीतिक परिदृश्य से पुलकेशि का निकास चालुक्यों तथा पल्लवों के मध्य संघर्ष को थोडी राहत दे गया। पर यह कुछ ही समय के लिए था। यह एक तरह से अस्थायी शांति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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