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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 15 थी। बाद के वर्षों में दोनों के मध्य प्रतिरोध तथा युद्धों ने और अधिक गति धारण की। प्रतिरोध की भावना इतनी आसानी से शांत होने वाली नहीं थी। इसमें कोई शक नहीं कि अद्वितीय पुलकेशि के नेतृत्व में चालुक्यों ने जो प्रतिष्ठा पायी थी उसके बारे में वे अब तक बेखबर ही थे। कई मायनों में वह एक महान निर्माता तथा बेमिसाल थे। राजनीतिक क्षेत्र में पुलकेशि के बारे में हम यह कह सकते हैं कि वह आया, उसने देखा और जीता। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्युन त्सांग, जिसने ई.स. 641-42 में भारत के दक्षिण भाग की यात्रा के दौरान वह कर्णाट देश से भी गुजरा था। अपनी यात्रा के दौरान, पुलकेशि द्वितीय के शासनकाल में प्रचलित सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों का उसने निरीक्षण किया था। उस साम्राज्य के कुछ प्रचलित अंशों को अगर देखना हो तो ह्युन त्सांग के यात्रावृत्त को देखना होगा। जो निम्नलिखित है... __'यह देश लगभग 5000 ली के वृत्त में है। पश्चिम में एक बड़ी नदी कृष्ण के तट पर राजधानी है। जो लगभग 30 ली गोलाकार है। यहाँ की मिट्टी अच्छी और उपजाउ है। जिस पर निरंतर फसल उगाई जाती है और जो निर्माणशील है। यहाँ की आबोहवा गरम तथा लोग बहत ही ईमानदार और सीधे सादे हैं। वे ऊंचेपरे तथा प्रतिरोध की भावना से भरे हैं। अपनों के लिए वे महान हैं तो शत्रुओं के प्रति क्रोधी हैं। उनका यदि अपमान किया जाय तो वे अपनी जान जोखिम में डालकर उसका प्रतिकार करते हैं। संकट के समय अगर उनको किसी की सहायता करने के लिए कहा जाय तो वे खुद को भूलकर सहायता करने पहुंच जाते हैं। और अगर उनको प्रतिरोध लेना है तो वे अपने शत्रु को पूर्व चेतावनी देते हैं और जब दोनों हथियारों से लैस हो जाते हैं तब वे एक दूसरे पर भाले बरछे से वार करते हैं। जब कोई एक भाग जाता है तो दूसरा उसे प्रेरित करता है पर उसे मारा नहीं जाता। अगर सेनापति युद्ध में हार जाता है तो उसे कोई सज़ा नहीं दी जाती बल्कि उसे औरतों का वेश भेंट स्वरूप दिया जाता है। इससे वह खुद मृत्यु चाहने लगता है। ह्युनत्सांग ने पुलकेशि को देखने के बाद यही दर्ज किया है कि, 'यह Tsati-li (क्षत्रिय, योद्धा) की जाति का है। इसका नाम पु-लो-कि-शे है। उसकी योजनाएं गहन, गंभीर तथा विशाल हैं। उसने खुले दिल से अपनी दया तथा हित सबके लिए समान रूप से दिखाई। उसकी प्रजा पूर्ण समर्पण भाव से उसकी सेवा करती है। वर्तमान में शिलादित्य महाराज (हर्ष) ने पूर्व से पश्चिम देश पर विजय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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