________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 13 क्योंकि उसने सम्राट हर्षवर्धन का करुणाजनक चित्र खींचते हुए उस पर विडंबन किया है, 'पतित गजेन्द्रानीक बीभत्सभूतो भय-विगलित हर्षो येन चाकारि हर्षः'। इस युद्ध की दुदुंभी यहीं पर रुकी नहीं हुई बल्कि पुलकेशि ने उत्तर के उल्लेखनीय युद्धों से प्रेरित होकर अपने छोटे भाई राजकुमार विष्णुवर्धन को राजधानी का प्रभारी बनाकर पूर्वी दक्षिण की ओर अपना मोर्चा किया। अपने निष्ठुर राजविस्तार अभियान में उसने कलिंग, कोसला, कुनाल (एल्लुरु के पास कोल्लेरु) पिष्टपुर, (गुंटुर जिले का पिठामपुर) पर विजय प्राप्त की। कुनाल सरोवर के पूर्वी तट के विश्नुकुंडनियों ने अपना समर्पण किया। फिर आगे बढकर पुलकेशि ने पल्लवों के उत्तरी प्रदेश को भी अपने राज्य में जोड लिया। ई. स. 621 में पुल्ललुरु के युद्ध में पल्लवराज महेन्द्रवर्मन प्रथम (600-30) को मिली पराजय से पल्लवों और चालुक्यों के संबंधों में कडवाहट आयी और उसके बाद हमेशा के लिए शत्रुता को हवा दी गई। जिससे आनेवाली पीढियों तथा राजवंशों को इसका आघात सहना पड़ा। तथापि, पुलकेशि को दो महान नेताओं (उत्तर में हर्ष और दक्षिण में महेन्द्रवर्मन प्रथम) को पराजित करने का श्रेय जाता है। .. पुलकेशि की राजनीतिक शक्ति, प्रशासनिक दूरदर्शिता, रणभूमि का पराक्रम तथा प्राविण्य और सांस्कृतिक वैभव आदि शिलालेखिय स्रोतों से अनुप्राणित है। पुलकेशि द्वितीय की महत्वाकांक्षा ने उसे एक बार फिर पल्लवों पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। पल्लवों की राजधानी के मार्ग पर स्थित रायलसीमा के बाणों तथा पल्लवों के वत्सलों को अपने वश में कर लिया। तीन दशकों से भी अधिक काल के लिए युद्ध की दुंदुभियों तथा नगाडों की आवाज़ से आसमान गूंज रहा था। जो कुछ उसने देखा और चाहा उसने उस पर विजय हासिल की। कई छोटे मोटे देशों की अधीनता, उज्वल जीवन तथा ऊँची आकांक्षाएँ आदि ऐसी चरम सीमा पर पहुँच गई थी कि मानो अब अपकर्ष की ही प्रतीक्षा शेष रही हो। और वह क्षण समय से पहले ही आ गया। अब युद्धों के खतरों की अनिश्चितता बढ रही थी। निर्भय और क्रुद्ध पल्लव घायल शेर की भाँति क्रोधित हुए थे और चालुक्यों के अधिपत्य को कुचल देने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे थे। दीर्घ प्रतिक्षित और संजोये समय ने पल्लवों का दरवाज़ा खटखटाया। उनके दलों को पीछे हटने की पीड़ा खासकर पल्लवों को हताश करने वाली थी, जिन्होंने अपनी सेना को सशक्त मान लिया था। किंतु लगातार मिली हार से उनकी कमियाँ खुलकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org