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________________ 10 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य जब एक छोटा सा बच्चा था तब राष्ट्रकूटों के साम्राज्य की बागडोर कर्की ने संभाली सौभाग्य से शौर्य के प्रेमी शेरदिल मंगलराजा (596-609) ने वृद्धि तथा विकास की अपनी नीति जारी रखी थी। उसने बुद्धरस उपनाम बुधाराजा कटचुरी राजा (कलचुरि राजा) जिनका राज्य गुजरात, खानदेश तथा मालवा तक फैला हुआ था, पर आक्रमण कर लूट का माल राजकोष में भर दिया था। अपने नाम 'उरुरण पराक्रम' के अनुसार उसने अपने कार्यकाल में कोंकण प्रदेश में चालुक्यों की सत्ताशक्ति को पुनःस्थापित किया और रत्नागिरि जिले में स्थित रेवतिद्वीप के राजपाल स्वामीराज के विद्रोह का दमन कर ध्रुवराज इंद्रवर्म को उस प्रदेश का राजपाल नियुक्त किया। इस प्रकार उसने चालुक्यों का अधिपत्य विंध्य के उसपार. भी फैला दिया था। मंगलेश को जैन धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों के प्रति भी आदर और सम्मान था। बादामी मे स्थित जैन गुफा' तथा परलूरु का शांतिनाथ मंदिर मंगलेश के कार्यकाल के दो प्रमुख स्मारक हैं. मंगलेश के कार्यकाल के हुल्ली कांस्य पत्र (ई.स. 600) में पूरलूर संघ की श्रेष्ठता को दर्ज किया गया है। बादामी में स्थित उसके शासन काल की जैन गुफा (संख्या 4) अत्यंत सुंदर शैली में बनवाई गई हैं। राजकुमार पुलकेशि के बड़े होने तक सब कुछ सही और सुरक्षित था। मंगलेश निर्भय ओर निरपेक्षता से कार्य किया करता था। किंतु जब पुलकेशि का प्रतिक्षित 'राज्याभिषेक का स्वर्णिम क्षण आया और उत्तारधिकारी के रूप में अपनी राजगद्दी की ओर बढ़ने लगा तब मंगलेश ने अपना शासन और अधिक समय के लिए बढाने की सोची। उसने वैध उत्ताराधिकारी को सिंहासन देने से मना किया और अपने पुत्र को राजा बनाने के लिए गुप्त रूप से षडयंत्र रचने लगा। जबकि इसके विपरीत महाकूट के एक स्तम्भ पर मंगलेश को 'युधिष्ठर इव सत्य संध' कहा गया है। मंगलेश ने अपने शासनकाल में कई वीरोचित कर्म किए जिसमें उसकी कोंकण विजय तथा मध्य-भारत की कलचुरि विजय भी शामिल है। उसने अपने बड़े भाई को श्रेय देने के लिए कई वैष्णव गुफा मंदिरों का उत्खनन किया था। अधिकार हडपने तथा अपने संबंधियों को उत्तराधिकार के रूप में राज्य दे देने के उसके स्वार्थी मतलब के कारण मंगलेश का व्यक्तित्व धुंधला पड़ गया और उसका कद बौना हो गया। तथापि उसकी उपलब्धियों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। वह एक सामान्य आदमी था कोई देवदूत नहीं और भूल तो आखिर इन्सान से ही हुई है अतः उसको द्रोही का लेबल लगाना उचित नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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