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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 11 पुलकेशि बहुत ही चालाक और तीक्ष्ण बुद्धिवाला था। उसने अपने चाचा के षडयन्त्रों तथा गुप्त मंत्रणाओं को संघ लिया और तुरंत ही कार्यरत हो गया। उसकी साजिश का पर्दाफाश करने के बाद उसने निष्ठावान लोगों से सैनिक सहायता प्राप्त की और गृहयुद्ध शुरु किया। मंगलेश को निकाल बाहर करने के लिए बाणों ने पुलकेशि को (ई.स. 609 में एळबट्ट सिभिगे नाडनूर गाँव की रणभूमि पर) सहायता प्रदान की। पुलकेशि ने अपनी उच्चाकाँक्षा तथा युद्धकौशल से मंगलेश को परास्त किया और राजाधिकार प्राप्त करने के लिए वर्तमान युग 609 में एळबट्ट सिंभीगे गाँव की रणभूमि में मंगलेश पर आखिरी वार करने अपनी तलवार उठायी। इस घटना के बाद मंगलेश के पुत्र का क्या हश्र हुआ इसका कोई पता नहीं है। पर हो सकता है कि उसके पुत्र के साथ भी वैसा ही बर्ताव किया गया होगा जो मंगलेश के साथ किया गया था। __ मंगलेश की मृत्यु के बाद पुलकेशि का संघर्ष खतम नहीं हुआ था उलटा अधिक ही बढने लगा था। विद्रोही शक्तियों के साथ उसे सतत लडना पड़ा था। उसने अपने राजनीतिक कौशल से एक महान राजा के रूप में अपनी शत्रुता को अवसरवादिता में बदल दिया। शौर्य ही नेता को जन्म देता है। पुलकेशि की गतिशिलता ने घिरे हुए काले बादलों को छितराकर दूर भगा दिया। उसने अपनी विजय-श्रृखंला से अपनी योग्यता तथा तेज दर्शा दिया। . पुलकेशि ने अपनी विजय-यात्रा का जीवन आरंभ किया। उसने भीमारति नदी के उत्तरी तट पर बसे कलचुरि के अप्पायिकों को निर्मुल किया। उत्तरी कोंकण के मौर्यो को नाको चने चबवा दिए जो वास्तव में मंगलेश का सहायक था। उसने अपने शत्रुओं को समर्पण का अवसर दिया ओर राजनीति के खेल में बिल्लियों को कभी शेर बनने की अनुमति नहीं दी। उसने तुळुनाडु (दक्षिण केनरा) के आळुपाओं को चकमा दिया। तलकाडु के गंगों को विफल किया। दुर्विनीत की पुत्री से विवाह किया। कदंबों को बनवासी से प्रस्थान करने के लिए कहा और सब पर अपने शासन की छाप छोडी। उसके सुरक्षा अभियान में लाट, मालवा तथा गुर्जरा के राजाओं ने उसके अधिराज्य को उत्स्फुर्तता से सहायता प्रदान की। चालुक्यों के नगाडों से निनादित उत्तरीभाग माही नदी तक विस्तारित होता गया। चोळ पांडूय और केरल नरेश पल्लवों को खदेडने को उत्सुक थे और वे चालुक्यों का साथ पाकर शक्तिशाली बन रहे थे। उसके सशस्त्र-सैन्य-जलपोत समुह ने धारापुरी (आधुनिक एलिफंटा द्वीप) को लूट लिया, जो पश्चिमी घाट की निखात-निधी थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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