________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 9 रणराग के प्रियतनु पुलकेशि प्रथम ने स्वयं को प्रथम विधात्रि सिद्ध किया। जो 'वातापि' का प्रथम निर्माता था। इस तरह 'सत्याश्रय श्री पुलकेशि वल्लभ महाराज' की अपनी पूर्ण उपाधि से वह चालुक्यों के शासन में एक लब्धप्रतिष्ठित राजा के रूप में चमक उठा। बादामी के उत्कर्णित (वर्तमान युग 543) लेखों में उसकी 'चालुक्यों का वल्लभेश्वर' कहकर प्रशंसा की गई है। (EI. VOL.XXVII:P:4) उसके बाद पुलकेशि धर्मराज राजाओं का राजा बन गयादुर्लभदेवी बप्पुरा राजवंश की राजकुमारी उसकी पटरानी थी और दमयन्ति के समान वह अपने पति को समर्पित थी। (Mahakuta Pillar Inscription) __पूगवर्म के अकाल निधन के कारण उसका छोटा भाई राजगद्दी पर आया। पुलकेशि प्रथम के पुत्र कीर्तिवर्म प्रथम (566-97) ने पश्चिम घाट पर अपने राजतंत्र की वृद्धि की। उसने बनवासी के कदंबों, कोंकण के मौर्यों तथा नलों को कुचला जो बेल्लारी के नलवाडी तथा कर्नुल जिले से शासन किया करते थे। शत्रुओं को परास्त करने के बाद इंद्रवर्म को कोंकण तथा पश्चिमी घाट प्रदेश का भार सौंपा। - रेवति द्वीप तथा गोवा के बंदरगाह का दमन करने से उनके साम्राज्य-विस्तार में अतिरिक्त वृद्धि हुई। कदंबों को, जो बनवासी में दो सौ वर्षों तक (330-545) मज़बुती से अपनी जड़ें जमा कर शासन कर रहे थे, उनको खदेडने का श्रेय पुलकेशि को जाता है। कीर्तिवर्म को 'सत्याश्रय', 'ऊरुरण-पराक्रम', 'वल्लभ' तथा 'कीर्तिवल्लभ' आदि उपाधियों से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उसके अन्य दो नाम भी थे. 'कट्टियरस' तथा 'पुगवर्मन'। कीर्तिवर्म ने अच्छी तरह से अपने साम्राज्य का विकास किया था। जैसा कि पहले कहा गया है, उसने कदंबों का विनाश किया, नलों को परास्त किया तथा मौर्यों का दमन किया था। तीन दशकों का उसका उत्कृष्ट शासन उसके पिता की उपलब्धियों का स्मरण कराता है। ____ पुलकेशि द्वितीय (610-642) उपनाम ईरेय्या छोटी आयु में ही अपने पिता का उत्तराधिकारी बना। पुलकेशि एक छोटा सा बच्चा था जब उसके पिता ने आखरी साँस ली थी। वे अपने पीछे चार पुत्रों (पुलकेशियों को) को छोड स्वर्ग सिधार गए थे। वे चार पुत्र थे - विष्णुवर्धन, धराश्रय, जयसिंह, तथा बुद्धवरस। ___ हालाँकि पुलकेशि आयु में बहुत छोटा होने के कारण उसके चाचा मंगलेश तथा उसके छोटे भाई कीर्तिवर्म ने शासन की बागडोर संभाली। लगभग 200 वर्षों के बाद एक समान स्थितियों का निर्माण हुआ था। जब 814-79 में अमोगावर्षा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org