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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 5 ऐहोळे, बादामी, पट्टदकल तथा पुलिगेरे आदि साम्राज्य के प्रसिद्ध शहर सांस्कृतिक वरीयता की ऊँचाई पर पहुंच गए थे। तथापि यह उज्ज्वल युग एक शताब्दी तक बना रहा। उनका सामाजिक-धार्मिक जीवन, ललित कलाएँ तथा आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी और तत्कालीन युग में प्रजा ने अपने युग के सांस्कृतिक जातिय संस्कार का खूब आनंद उठाया था। वास्तव में आसपास के धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व के केंद्रों ने महानगरी बादामी के सांस्कृतिक विकास में अपना विशिष्ट योगदान दिया, जिसने भौगोलिक दृष्टि से अपना सामरिक महत्व का स्थान बना लिया था। ऊबड़-खाबड पहाडी पर विशाल किले का निर्माण किया गया, जो नाजुक क्षेत्र में नव निर्मित साम्राज्य को सुरक्षा प्रदान करनेवाला मज़बूत गढ़ था। ऐसा लगता है मानो कि इसके विशिष्ट प्राकृतिक परिदृश्य ने राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा सभ्यता के विकास में सहायता पहुँचा कर अपनी विशिष्टता की छाप छोडी हो। ___प्राचीन भारत में पूर्वी चालुक्य मुख्यतया साम्राज्य निर्माताओं में से एक थे। विंध्य के दक्षिण प्रदेश तक उनका साम्राज्य फैला हुआ था। उनके शासनकाल में निरंतर युद्ध हो रहे थे। फिर भी उनके साम्राज्य में शांति थी, संपन्नता थी और विकास भी हो रहा था। उस युग का कलात्मक सृजन भारत की कलात्मक स्मारकीय गुणवत्ता की तुलना में श्रेष्ठ था। आज भारत में ऐसी कलात्मकता दुर्लभ है और सौभाग्यवश आज भी वे अपनी नव्यभव्यता के साथ खड़ी है। .. इस प्रकार, जैसा पहले कहा गया है कि तत्कालीन कला एवं सामाजिकसांस्कृतिक परिस्थितियों में जैनों का स्थान विषय पर स्वतंत्र अध्ययन की आवश्यकता है। दिलचस्प बात यह है कि जैन कला में भव्य-भवन, पाषाणों में बनी प्राचीन गुफाएँ तथा जैनों तथा उनके दास-भक्तों की भव्य मूर्तियों का समावेश है। जैनों की शिल्पकला, पूर्वी चालुक्य तथा राष्ट्रकूटों की कला के मध्य एक कड़ी थी, जिससे निश्चित ही राष्ट्रकूटों के स्वर्णयुग का पूर्वानुमान होता है। ___ सुरक्षा सेना व्यवस्था में इनकी अत्यंत तेज चतुर्दलीय सेना थी- रथ-दल, गज-दल, अश्व-दल तथा पद-दल। क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित ढंग से शत्रु का विनाश करना चालुक्यों की नीति थी, जो छठी सदी के मध्य एक उच्च राजवंश के रूप में उदित हुए थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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