________________ 4 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य देवराज प्रथम + प्रभावती (350-60) मानराज/ मानाणक (360-400) देवाराज द्वितीय (400-25) अविधेय विभुराज उपनाम मानराजा द्वितीय भविस्य / 455-70 440-55 श्यामलांगी (425-40) अभिमन्यु 470-90 कृष्ण (490-530) (510-30) देवराज तृतिय (देज महाराज) (530-550) प्राकृत प्रभाव के कारण देवराज का देज हो गया। प्राकृत में 'र' का लोप होने के कारण देवराज का देज, दुर्योधन का दुजोधन हो गया। इसी तरह व्यक्तिवाचक नाम देवराजम्मा का देजम्मा हो गया। समय में फूलने फलने के कारण पुलकेशी द्वितीय का पतन निश्चित हो गया और लगभग ई. पू. 200 में आगुप्तायिका का युग आरंभ हुआ होगा। के.वी. नरेश सिरकार के कथन से मतभेद रखते हुए यह कहते हैं कि ई. पू. चौथी सदी के उत्तरार्ध में देज महाराज ने आगुप्तायिका का आरंभ किया होगा और चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा इसका अच्छा प्रारंभ हो सका होगा। 543 के पहले पुलकेशी द्वितीय से देज्ज महाराज निरस्त हुए होंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org