SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 6 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य 'वीर जयसिंह', 'विजय का सिंह' ने चालुक्य राजवंश को अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा किया और उसके बाद उसने कभी पीछे मुडकर देखा ही नहीं और असाधारण कार्य करता हुआ आगे और आगे ही बढता चला गया। महाकूट के स्तम्भ लेखों में उसे वैश्रवण उपनाम कुबेर के रूप में चित्रित किया गया है जबकि ऐहोळे के शिलालेख में उसे योद्धा के रूप में अंकित किया गया है, जिसने साम्राज्य की चंचल देवी को भी नियंत्रण में लाया था। जयसिंह के पुत्र बुद्धिवर्मन को रणविक्रांत तथा रणराग की उपाधि से विभूषित किया गया था। जो उपाधियाँ कालांतर में उसके नाम की ही पर्याय ‘बन' गई। इतिहासकारों ने उसे रणराग' के नाम से संबोधित किया है। जाहिर है यह उपाधि उसकी शूरता और वीरता का दर्पण ही थी। जयसिह का पुत्र रणराग' (520-40) एक जाँबाज़ योद्धा और एक सत्यनिष्ठ राजा भी थाशिलालेखों में उसे दैवीशक्तियों से युक्त राजा के रूप में चित्रित किया गया है और साथ ही जगदेकनाथ (विश्व का एकमात्र राजा) की उपाधि से भी सम्मानित भी किया गया है। विरुदावली या स्तुतिगान के अलावा जयसिंह और 'रणराग' (पिता-पुत्र) ने स्वतंत्र राजा का स्थान कभी नहीं लिया। सत्याश्रय जैसी उपाधि पहली बार जयसिंह को ही दी गई। फिर उसके बाद यह उपाधि अन्य राजाओं तक निरंतर चलती रही। कवि रविकीर्ति ने अपने आश्रयदाता को सत्याश्रय तथा महाराज के रूप में वर्णित किया है। तैलप्पा के पुत्र ने सत्याश्रय यह नाम रखा था। चालुक्य राजवंश का प्रथम राजा, जयसिंह प्रथम, गुणचंद्र, वसुचंद्र, वादिराजा जैसे धर्माचार्यों तथा उनके आध्यात्मिक उपदेशों का संरक्षक था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy