________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 169 कशायपाहुड (संस्कृत- कश्यप्राभृत) तथा छक्कंडागम (संस्कृत-षट्खंडागम) का ज्ञान, का मूल प्राचीन आगम साहित्य आग्रायणिय के दूसरे पर्व में है जिसमें कर्म पर विशेष विचार किया गया है जिसका जैन दर्शन से संबंध है। विद्वान धरसेनाचार्य ने अपनी अभिलेखिय विद्वता, दक्षिण के अपने दो अष्टपैलु शिष्य पुष्पदंत तथा भूतबलि को सौंपी थी, जिन्होंने बदले में सत्तप्रारुपण उपनाम षट्खंडागम की रचना 6000 सुत्रों में की / पुष्पदंत ने केवल प्रथम 177 सूत्रों की रचना की और शेष 5823 सूत्रों की रचना आचार्य भूतबलि ने की। इसी के साथ साथ जैन परंपरा में आनेवाले कुछ विद्वान जैन संतों ने भी विद्वत्तापूर्ण भाष्य लिखें। इन भाष्यकारों में से समंतभद्र, श्यामकुंद, तुंबलूर, बप्पदेव तथा कोंडकुंद आदि अपने काल के प्रसिद्ध लेखक थे। हालाँकि ये भाष्य आज विद्यमान नहीं है। ऐसा माना जाता है कि कोंडकुंड की व्याख्या का नाम परिक्रमा होगा। आखिर सम्मानित वीरसेन तथा जिनसेन आचार्य दोनों शिष्य और आचार्य जिन्होंने विद्यमान धवल तथा जयधवल व्याख्याओं की रचना मनिप्रवल शैली में की है, जो प्राकृत तथा संस्कृत के मिश्रण से बनी है। पंचस्तूप अन्वय के तपस्वी वीरसेन ने ई. स. 816 में धवला भाष्य को 72,000 ग्रंथों में पूर्ण किया। यह ग्रंथ 36 अक्षरों की एक इकाई है। आश्चर्यजनक बात यह है कि तपस्वी वीरसेन ने अकेले पूर्ण किया। एक अन्य ग्रंथ कशायपाहुड की रचना गुणधर ने की जो इसी प्रकार का था और उतने ही महत्व का था। (इ.उ. द्वितीय सदी)। 233 ग्रथों की यह कृति क्रोध, मान, माया तथा लोभ, चार कशाय, जो कर्मबंधन तक ले जाते हैं। यति-वृषभ जैसे आचार्य तथा उच्चारणाचार्य आदि ने कशायपाहुड पर भाष्य किया किंतु बाद में आचार्य वीरसेन ने अपनी श्रेष्ठ कृति धवल पर 72,000 ग्रंथों (अक्षर परिमाण) में भाष्य लिखने का काम पूर्ण करने के बाद कशायपाहुड पर बृहत भाष्य लिखना शुरु किया। (कशायप्राभृत-पेज्जदोस-पाहुडा) किंतु वीरसेन ने केवल 20,000 ग्रथों की रचना की। तथापि, उसके प्रतिभाशाली शिष्य तथा लेखक जिनसेन ने शेष 40,000 ग्रथों में 'जयधवल' नाम से भाष्य लिखना शुरु किया तथा पूर्ण भी किया। इस प्रकार 'जयधवल कुल 60,000 ग्रंथो का है। ___ छठी सदी के उत्तरार्ध तथा आठवीं सदी पूर्वार्ध के मध्य जिन्होंने तत्वार्थ-सूत्र' तथा 'षट्-खंडागम' पर जो भाष्य लिखे, वे लेखक चालक्य प्रदेश के निवासी थे। इस प्राचीन साहित्य के भाष्य जो आज उपलब्ध नहीं है फिर भी इसने निश्चित रूप से दक्षिण में साहित्य को एक गरिमा दी थी। इन लेखकों को आज भी याद किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org