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________________ 168 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य ने अपने राजा के राजनैतिक इतिहास को अभिलिखित करने हेतु रविकिर्ती के संस्कृत ताम्रपत्र से होड ली थी। जिननंदी, जैन धर्मानुयायी सिंह सेनापति के पुत्र ने पाँचवी सदी के अंतिम दशक (ई. स. 485) में केकेय चित्रसेन महोकेला के होन्नावर पत्र की रचना की थी। काव्यगत उत्कृष्टता कसौटी होने के कारण, एक प्राचीन कवि होने के नाते चालुक्यों के दरबारी कवि रविकीर्ति इस पर खरा उतरा तथा न केवल अपने युग का जैन धर्म मतवादी बल्कि पूरे कर्नाटक का आदर्श कवि था। गुंडल हल्ली पुरालेखिय साक्ष्य के अनुसार कन्नड भाषी कवि दिव्य भाषाकलन ई. स. 760 का था। इस प्रकार वह चालुक्यों का अंतिम कवि तथा राष्ट्रकूटों का प्रथम कवि हो सकता है। किंतु उसकी कोई भी. कृति ज्ञात नहीं है। मेगुडी जैसे विशाल जैन प्रार्थनागृह का निर्माता, अतुलनीय क्षमता का राजनेता रविकीर्ति साहित्य के क्षेत्र में भी उतना ही महान था जितना एक महान जैन भक्त भी। उसकी रचना के दो उत्तम उदाहरण हैं एक मेगुडी का प्रार्थनागृह तथा दूसरा उच्च काव्यात्मकता से परिपूर्ण संस्कृत पुरालेखा पुलकेशी का विश्वासपात्र मित्र राजकवि रविकीर्ति का गौरवशाली ऐहोळे का शिलालेख, संस्कृत की अभिजात कृति है। जिसके धाराप्रवाह पद अप्रतिम है। पुलकेशी तथा उसके दादा परदादा, साहसी तथा उदार थे और सफल युद्धों के महान वीरयोद्धा थे। लेकिन रविकीर्ति के ऐहोळे प्रशस्ति पुरालेख में चालुक्य साम्राज्य का इतिहास सरक्षित है तथा उनकी उपलब्धियाँ चित्रों में वर्णित है। ऐहोळे के शिलालेख पुलकेशी द्वितीय तथा उसके पूर्वजों का. अन्य प्रदेशों का शोषण तथा उनके साहसी विजयों का जीवंत स्मारक है। यह पुरालेख विशुद्ध संस्कृत में लिखा गया है और जो सातवीं सदी के कन्नडतेलगु अक्षरों में 19 पंक्तियों का है। जिससे इसके लेखक रविकीर्ति को संस्कृत के महान साहित्यकार कालिदास तथा भारवी की कोटी में ला खड़ा किया और फिर यह सबसे प्राचीन पुरालेख है जिसमें कलियुग की तिथि को अभिलिखित किया गया है, जो शक युग के बराबर है, अर्थात कलिकाल 3735= शक 556 जो ई. 634-35 के बराबर है। . जनानखाने अथवा रनिवास की कुलीन महिलाएं राज्य तथा जनता के कल्याण का कार्यभार संभालती थीजो महिलाएँ आवासों में रहती थीं वे जनकल्याण में भाग लेती थी तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया करती थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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