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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 163 अधिक मजबूत होती गई और राष्ट्रकूटों के शासनकाल (755-963) में वह अपने शिखर पर पहुँचती हुई दिखाई देने लगती है। कन्नड की यह गतिशीलता कल्याण चालुक्यों के काल में 90 प्रतिशत बढी। परिणामस्वरूप प्राकृत लुप्त हुई और संस्कृत केवल स्थानीय साहित्य की भाषा बनकर रह गई। कन्नड भाषा ने बादामी के शासनकाल में अपने स्थान तथा प्रतिष्ठा को इतनी मजबुती से पकड रखा कि उसके बाद उसने अपनी पकड तथा महत्व को कभी जाने नहीं दिया। हालाँकि धीरे धीरे संस्कृत की साहित्यिक गरिमा क्षीण होती गई, फिर भी परवर्ति काल में वह बनी रही किंतु कन्नड के बाद ही उसका स्थान रहा। _इस प्रकार, कर्नाटक का प्रथम वास्तविक वृत्तांत है, उसके शासक, शासन प्रणाली, संस्कृति, वाणिज्य, कला-शिल्पकला, तथा साहित्य, वर्तमान जैन मंदिरों के प्राचीन परतों में दिखाई पडता है जो विशाल बादामी साम्राज्य की ओर इंगित करता है। विद्वानों की अकादमी तथा विद्वानों ने, जो मूलतः अनुदेशक तथा कुलपिता थे, जिनका संरक्षण शासकों तथा व्यापारियों ने किया था, साहित्यिक भाषा का मानकीकरण किया था। कुछ महत्वपूर्ण लोगों के समय को रेखांकित करने के लिए जिन्होंने इतिहास में अहम भूमिका निभायी थी, साहित्य तथा पुरालेखों से जैन सामग्री की जानकारी प्राप्त करना तथा अध्ययन करना अनिवार्य है। काव्य में पायी जानेवाली समकालीनता की छानबीन से प्रादेशिक इतिहास का पुनर्निर्माण करने की सुविधा प्राप्त हो सकती है। ___महान युग के अतिउत्तम कवि, कवि रविकीर्ति ने (634), उन्हीं मानक साहित्यिक परंपराओं को कलमबद्ध किया जो परंपरा विद्वान कवि कालिदास तथा भास ने चलायी थी, और उनका उल्लेख वह खुले दिल से करता है। रविकीर्ति ने समंतभद्र देव (575-625 अई.) तथा पूज्यपाद (625-75 अई.) जैसे सम्मानित लेखकों की जैन कृतियाँ पढी भी थी या नहीं इसका पता नहीं है। इसी प्रकार रविकीर्ति आगम साहित्य कृतियों से या पुरोहित परंपरा से कितना परिचित था यह भी अस्पष्ट है। वह कन्नड़ के प्रधान तथा गौण प्रदेशों में रहा करता था। अतः कोई भी यह अपेक्षा कर सकता था कि वह निश्चित ही कन्नड जानता होगा। इसके अलावा वह एक स्थानीय प्रतिभाशाली व्यक्ति था जिसे पुलकेशी ने ढूँढा था। जाहिर है कि जयकीर्ति द्वारा रचित, अविद्यमान कन्नड काव्य, संस्कृत की कृति, कर्नाटेश्वर कथा , जिसका उल्लेख चंदानुशासन में हुआ है, का लेखकत्व रविकीर्ति को ही जाता है। नागवर्म लिखित काव्यावलोकन में उल्लेखित एक कविता में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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