________________ 164 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य पुलकेशी के कार्य का प्रतिपादन किया गया है, संभवतः इसी कविता का उद्धरण ___ चालुक्यों ने कन्नड तथा संस्कृत दोनों को प्रोत्साहित किया। और आश्चर्यजनक बात यह है कि प्राकृत शासन तथा साहित्य दोनों में लुप्त है। अतः, कन्नड तथा संस्कृत भाषा के वर्ण बहुत ही करीने से तथा सुंदरता से खुदवाए गए हैं। आदिकदंबों के काल की तुलना में कन्नड भाषा के पुरालेख अधिक मात्रा में खुलकर इसी समय आने लगे। जीवन के हर क्षेत्र में कन्नड भाषा की उन्नतोदारता की संपुष्टी करनेवाले साक्ष्य मिलते हैं। कर्नाट यह नाम जैसे सुरक्षा की कुशलता व्यक्त करने के लिए लोकोक्ति स्वरूप ही उपयोग में लिया जाने लगा था, जैसे चालुक्यों ने अपने दल का नाम कर्नाटबल रखा था। पंडयों ने अपने सौहार्दपूर्ण संबंध इस हद तक बनाए रखे थे कि राजा शडई (राजा नेडुंनंजडियन के दादा) को मधुर करुनाधगन के नाम से जाना जाता है। यह उक्ति मदनंगाश्रय बुद्धवरस (650) किर्तीवर्म प्रथम (566-96) तथा पुलकेशि द्वितीय (610-42) के छोटा भाई का स्मरण कराती है। कुछ व्यक्तिगत नाम जैसे अंबेरा, बुद्दवरस, ईरयप्पा, कोक्कुलि, पोलकेशि, राहप्पा में कन्नड की खुशबू है। व्यक्तिगत नाम में जो अरसु परसर्ग लगता है यह संस्कृत राजन का द्रविड शब्द है। और नोडुत्ता गेल्लोम (अर्थात जो देखते ही जीत लेता है) तथा प्रियगल्लम की उपाधि कन्नड के खास शब्द हैं। मदनंगाश्रय यह उपाधि भी कन्नड के कर्ता प्रत्यय गे से जुड़ा हुआ है। अनुपलब्ध कन्नड का एक अभिजात महाकाव्य कर्नाटकेश्वर कथा का शीर्षक भी उस प्रदेश तथा भाषा को सूचित करता है। कर्नाडेश्वर कथा में पुलकेशी द्वितीय को किसी पौराणिक पात्र के साथ जोडा गया है। इसलिए संभवतः उक्त काव्य का ऐतिहासिक महत्व है। अतः इस काव्य के रचनाकार जैसे कि पहले कहा गया है विद्वान कवि रविकीर्ति है...इसपर विचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि रविकीर्ति को उक्त चालुक्य वंश परंपरा की पुरी जानकारी थी अतः ऐहोळे का प्रसिद्ध शिलालेखलिखने के बाद उसने अपनी लेखनी उक्त काव्य के लिए चलाई होगी। ___ पुलकेशि द्वितीय की बहू विज्जीका स्वयं को कर्नाटक-राजप्रिया कहा करती थी और राजशेखर ने अपने काव्य शास्त्र में उसे कर्नाटी कहा है। इस प्रकार कर्नाटक प्रदेश को भारत के नक्शे पर इतनी प्रखरता से रखने तथा प्रसिद्धी दिलाने का श्रेय चालुक्यों को ही जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org