________________ 152 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य परमआकृति गृहपिंडी से बनवायी गयी है जो सालाकोस्थ से समृद्ध है। जबकि कर्ण ने कपोतपंजर धारण किया है।.... महानासिस को एक जैसा ही वनस्पति संवर्धन है जैसा कि कुटों तथा सालास में, किंतु कुछ थोडी से बड़े आकार में। उनकी गुफाओं में जिन की शिल्पाकृतियाँ आसनस्थ हैं। उसकी गोलाई साथ ही साथ शिखरों का अनुपात भी द्रविडदेश के समकालीन उदाहरणों से भिन्नता रखते हैं किंतु कुटों से समानता रखते हैं। एक छोटा अंतराल गुढमंडप को विमान से जोडता है। (c.20 ft 5 in wide) (Dhaky 222) ___लंबा पट्ट, रत्न रस्से को उत्सर्जित करती चौडी पेटी, एक खुदी हुई लहराती लतिका, नीचे आसनस्थ जिन की शिल्पाकृति तथा दालान के भीतर चार भ्रमकांत स्तम्भों के शहतीर पर बनी बाहुबलि तथा अर्हत पार्श्व की कायोत्सर्ग मुद्रावाली शिल्पाकृतियाँ शिल्पकारों की छैनी की कुशलता तथा कला का प्रमाण है। प्रचुर तथा तीक्ष्णता से खुदे आभूषणों की नक्काशी अपनी ऊँची गुणवत्ता तथा कलाकारी प्रारंभ से लेकर अंत तक-एक सी बनाए रखी है और ये कर्नाटक के सबसे अच्छे उदाहरण हैं। गर्भगृह के अंदर का सिंहासन उतना ही प्राचीन है जितना कि वह मंदिर है लेकिन वहाँ की प्रतिमाएँ आधुनिक हैं। कुल मिलाकर मंदिर राजसी है पर उसके आकार में न होकर उसके उत्कृष्ट होने में हैं। (डाकि 222-223). . प्रो.ए. सुंदर के अनुसार यह मंदिर वातापी युग के प्रारंभिक काल के सातवीं सदी का है। प्रो.एम.ए ढाके इसे राष्ट्रकूटों के काल में रखते हैं। सारी बातों को ध्यान में रखने के बाद मुझे लगता है कि यह बसदी बादामी के शासनकाल के प्रारंभिक दशकों की है। इस नतीजे पर पहुँचते समय शिल्पकला के मूलतत्व जैसे, - 1. द्वारमार्ग पर संरक्षक शिल्पाकृतियों का अभाव .. 2. दरवाजों के पाखों पर खुदाई शंखनिधि तथा पद्मनिधि का प्रतिमाएँ 3. नवरंग के भीतर कॉलम के ऊपर का लंबा पट्ट जो नागरल में स्थित चालुक्य मंदिर (सिरका सातवीं सदी) तथा एलोरा के कैलास मंदिर (लगभग .... 750) से साम्य रखता है। ये सभी मंदिर की प्राचीनता ही जताते है। और तो और यह मंदिर आठवीं सदी के कमठेश्वर के हिंदु मंदिर से कई बातों में साम्य रखता है। विद्यमान जिनायतनों जैसे हलसी जिनगृह (छठी सदी), पुलिगेरे का शंखजिनालय (मध्य छठी सदी), ऐहोळे मेगुडी (634) में बोगार बसदी (लगभग 730) बादामी साम्राज्य में मुकुट की तरह चमकते है। लालित्यपूर्ण अनुपात तथा उच्च स्तर की कारीगरी की दृष्टी से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org