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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 153 अगर इनको आँका जाय तो इन मंदिरों को कर्नाटदेश के इस युग के सबसे सुंदर मंदिरों में गिना जाना चाहिए / (ढके 222) जैन केंद्रों ने मध्ययुग की अंबिका (आम्र, कूष्माडिनी) के पाँच स्वतंत्र शिल्प बनवाये जो ग्रेनाइट मे बनवाए गए हैं। इन आकृतियों की अपूर्वता यह है कि सभी पाँचों आकृतियाँ द्विहस्ति, विश्वपद्म में ललितासन में हैं, जिसका बाया हाथ गोद में बैठे अपने बेटे को आधार दे रहा है और दाहिना हाथ आम्रखंबी धारण किए हुए हैं। पाँच शिल्पाकृतियों में से दो बोगारा बसदी के पास हैं और एक आठवीं सदी के प्रारंभ के दशकों की है जो कि बादामी शासन के काल में पडती हैं। संभवतः यह शिल्पाकृति 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ को समर्पित एक भिन्न संभवतः उससे भी प्राचीन मंदिर की है। कोई भी ऐसा कारण नहीं मिलता कि जो यह बता सके कि क्यों ये प्रतिमाएं मंदिर के बाहर रखी गई हैं जबकि दोनों प्रतिमाएँ तथा . मंदिर जैन जाति की ही हैं। . श्रवणबेळगोळ की शासन देवी अंबिका होने के कारण यह स्वाभाविक तथा न्यायोचित है कि अंबिका की प्रतिमाएँ संख्या में अधिक हैं। होंबुजा की प्रधान देवी पद्मावतीदेवी है। लेकिन यहाँ की पुरानी विद्यमान स्वतंत्र प्रतिमाएँ अंबिका की है। इसको ज्यादा अहमियत देने का कारण क्या रहा होगा यह जानना कठिन नहीं है कारण इतिहास में सांतरों का उदय बादामी साम्राज्य के सेवकों के रूप में हुआ, जिन्होंने अंबिका की आराधना को बढावा दिया। जाहिर है कि, उनके शासनदेवता की आराधना के स्वीकृति प्राप्त करने के लिए सांतरों ने जैन धर्म को अपने विश्वास का संबल बनाया और प्रसन्नता से अंबिका की मूर्ति की स्थापना की। यहाँ यह स्मरण रखना होगा कि पोंबुर्च का प्रधान चित्रवाहन प्रथम (663-730) ने विनयादित्य की पुत्री कुंकुम महादेवी से विवाह किया था। पुलिगेरे- शंखबसदी __ वैभवपूर्ण नगरों का निर्माण किया गया तथा जो धार्मिक, सामाजिक-सांस्कृतिक, शिल्पकलागत, आर्थिक तथा व्यापार जैसे विभिन्न क्षेत्रों की व्यस्त गतिविधियों का स्थान बने। पुलिगेरे के व्यापारियों के पट्टि (आधुनिक हट्टियंगडि, कुंडापुर तालूका, सातंरो की दूसरी राजधानी) के साथ व्यावसायिक संबंध थे। जिनदत्त (सातवीं सदी) ने पट्टी के आठवें तीर्थंकर चंद्रनाथ उपनाम चंद्रप्रभ को समर्पित किया था जो बाद में आग में जल गया और बाद में उसका फिर निर्माण किया गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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