________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 151 प्रतिमा शायद कदंबों के शासनकाल के अंतिम दशक की होगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस प्रदेश में जैन धर्म छठी सदी से ही बहुत गहरी जड़ें जमा चुका था। खुदे हुए प्रमाणों के अभावों के कारण मंदिर के देवता का पता लगाना बहुत कठिन होता है, और उपर्युक्त प्राचीन प्रतिमा की खोज के बाद तो और भी कठिन है। राजकुमारी कुंकुम ने अपने बचपन से ही, अपने दादाओं के शासनकाल में बादामी तथा ऐहोळे में पायी गयी अर्हत पार्श्व तथा केवलि बाहुबलि की शिल्पाकृतियों तथा ऐहोळे जैनेन्द्र भवन में अंबिका की प्रतिमा को देखा है और उनकी पूजा भी की है। जाहिर है कि वह जिनभवन तथा पार्श्व, बाहुबलि, अंबिका का उसी प्रकार पवित्रीकरण चाहती थी जैसा कि उसने देखा तथा उनकी प्रशंसा भी की थी। इस पार्श्वभूमि पर मैं यह कहने का साहस कर रहा हूँ कि बोगार बसदी के स्तम्भों पर पार्श्व तथा बाहुबलि की शिल्पाकृतियाँ खुदवाकर उसके पति चित्रवाहन ने तो जैसे रानी का सपना ही पुरा किया हो। ऐसे में बोगार बसदी परवर्ती काल की हो सकती है। आम्र की प्रतिमा को ऐहोळे की प्रतिमा की तरह ही खुदवाया गया है, जो निश्चित ही आठवीं सदी के प्रारंभिक दशकों की है। बोगार बसदी होम्बुज की सबसे पुरानी एवं प्राचीन नींव है। अक्सर यह जिनेंद्रालय बोगार बसदी के नाम से जाना जाता है और कभी-कभी इसका उल्लेख अशोकवन बसदी के रूप में भी किया जाता है। बोगारं यह कन्नड शब्द व्योकार (लोहकार) का अपभ्रश रूप है। लोह-व्यापारी समुदाय के द्वारा संस्थापित होने के कारण यह मंदिर बोगार बसदी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इससे गधिकेशवरा (गुलबर्गा जिला, चिंचोली तालुका) का कंचुगार बसदी का स्मरण होता है, इस मंदिर का नाम बनवाने वालों के नाम पर पड़ा। इसे घंटी बनवानेवालों ने बनवाया था। ___ बोगार बसदी को एक अन्य नाम अशोकवन बसदी पडने के पीछे कारण यह था कि यह घने जंगल में स्थित है। यह मंदिर ऐसा लगता है मानों प्रकृति की गोद में एक छोटा, सुंदर सा बालक बैठा हो। बादामी-युग के शिल्पों में यह मंदिर अपनी शिल्पकला में अद्वितीय है। उसके मूल ढाँचे के बावजूद उसे थोडा ग्रीवा तथा शिखा से भारयुक्त कर दिया गया है, उसके पुराने कपडे अभी भी ठीक है। प्रतिबंध पर बनाए गए विमान तथा महामंडप तथा पदबंध अधिस्थानों के साथ बोगारबसदी की भित्तियाँ ब्रह्मकांत की शिल्पाकृतियों से युक्त हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org