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________________ 150 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य की कुछ प्रतिमाएं विशेषकर ओरिसा खंडगिरी गुफाओं में स्थित प्राचीन शिल्पाकृति के समान हैं। पीछे की ओर मुडे केश तथा सिर के मध्य भाग में उनिषा, संभवतः गांधार के प्रभाव के कारण रहा है, इस पर विचार करना भी जरूरी है। पास ही बह रही कृष्ण नदी से निकाली गई प्रतिमा तथा हस्तमुद्राओं का शरीर के साथ त्रिकोण बनाना आदि यही जताते हैं कि यह प्रतिमा सातवीं-आठवीं सदी की है। यह तो निश्चित है कि अमरावती तथा कृष्ण नदी की खाई के अन्य स्थानों पर धार्मिक संस्कृति का विधान चलाने में जिन प्रभाव का बहुत बड़ा हाथ है तथा पुरालेखिय तथा शिल्पगत गवाहों के द्वारा इस तथ्य को आधार मिलता है। ___ पट्टजिनालय की संकल्पना की जड़ें कदंबों तथा गंग घरानों में मिलती हैं और जिनको एक विशिष्ट आकार चालुक्यों के शासनकाल में मिला, जिन्होंने शंख जिनालय को अपने इष्ट देवि में बदल दिया और अधिकृत रूप से इसे पट्टजिनालय बनाया। पट्टदकल्ल इस नाम की व्युत्पत्ति को भी विशेष रूप से ध्यान में रखना होगा। पट्टदकल, पट्टद, किसुवोळाल का संक्षिप्त रूप है, जिसमें पट्टद यह शब्द किसुवोळाल का उपसर्ग है। जिससे यह स्थान किसुवोळाल से अलग हो जाता है और साथ ही अन्य जिनालयों से पट्टद जिनालय भिन्न लगे। अतः पट्टदकल में 'कल' परसर्ग किसुवोळाल (लाल रंग की नगरी) का संक्षिप्त रूप है। अब्बिगेरे के पुरालेख (गदग जिला रोण तालूका तिथि 1113) में किसुवोळाल के आस पास का भाग 'किसुवोळाल' नाडु के नाम से जाना जाता है। किसुवोळाल में हाल ही में किए गए उत्खनन में विद्यमान जैन मंदिर के संकुल में ईटों में बनवाया एक और जिनालय प्रकाश में आया है। इस जिनालय में गर्भगृह, अंतराल तथा सभामंडप भी है जो छठी सदी के मध्य का हो सकता है, और जो तत्कालीन युग का सबसे प्राचीन जैन मंदिर हो सकता है। उस ईटों वाले मंदिर की साँचे में ढली बुनियाद गौडर गुडी के समान लगती है। (राव एस आर. New light on Chalukya Architecture', The Chalukyas of Badami (ed) M.S.N. Rao: 1978:274) पट्टदकल का जैन नारायण मंदिर कोल्हापूर में स्थित रूपनारायण जिनालय साथ ही नारायण (वासुदेव) प्रतिनारायण (प्रतिवासुदेव) की अवधारणा का तुरंत ही स्मरण दिलाता है, जो 63 महान व्यक्तियों में गिने गए हैं। जैसा कि ऊपर कहा गया है, 20वीं सदी के अंतिम दशकों में जैन मंदिर के आसपास किए गए उत्खनन में ईटों से बना एक और जैन मंदिर और कायोत्सर्ग मुद्रा में पायी गई जिन की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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