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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 149 भाग है। कर्नाटक की यह अत्यंत प्राचीन प्रतिमा है जो सातवीं सदी के बादामी चालुक्य-काल की है। इतना ही नहीं अनुसंधाता यह भी निश्चित करते हैं कि गडिकेशवार की सर्वाह यक्ष की प्रतिमा पहली तथा स्वतंत्र प्रतिमा है। चालुक्य साम्राज्य में जैन धर्म के फैलने के क्या कारण थे यह बताने के लिए यह सारे साक्ष्य काफी हैं। भले ही यह समय की गर्त में खो गया है फिर भी मिथकों, स्मृतियों तथा कुछ खास अवशेषों से सुरक्षित हैं, गधिकेशवार सूदूर ग्रामीण क्षेत्र में एक रत्न सा है। ___ इस पुस्तक के लेखक के द्वारा हाल ही में मल्लसमुद्र में तीन प्राचीन जैन प्रतिमाओं की खोज की है और यह साबित किया है कि यह ग्राम आठवीं सदी का प्रसिद्ध जैन संस्था का केंद्र था। हालाँकि अब वह प्राचीन पुराना मंदिर अस्तित्व . में नहीं रहा, किंतु पूर्वोन्मुखी एक छोटे से हाल में तीन जिन की तीन भव्य प्रतिमाएँ एक ऊँचे चबूतरे पर स्थापित की गई हैं। उनमें से दो खड्गासन में स्थित जिन पार्श्व की तथा एक जो अर्धपद्मासन की मुद्रा में है वह महावीर की है। जिन पार्श्व की दो शिल्पाकृतियों में एक जो पाँच फनों वाले छत्र की है वह कर्नाटक की सबसे प्राचीन शिल्पकृति है। जिसका समय ईसा की आठवीं सदी का है। जिसमें उडते हुए देवदूत या चामरधारी या सेवक देवताओं का अभाव जरूर है। अनुपातपूर्ण बलशाली देह, थोडा सा अंडाकार मुख, लंबे कान, तथा मुंडन किया हुआ सिर उसकी सौंदर्यदृष्टि तथा जिनबिंब की रचना का ही उद्घाटन करती है। गुड्डे जैसा ठोसपन तथा प्राचीन नग्नता जो जिन शिल्प का वैशिष्ट्य है, इस शिल्पकृति में अत्यंत सुंदरता से प्रदर्शित किये गये है। ऐहोळे तथा बादामी की गुफाओं के सामने वाले दालानों में स्थित जिन पार्श्व के शिल्प भी छठी सदी के माने जाते हैं जो पीतल में खुदवाए गए हैं। किंतु अब तक मल्लसमुद्र की प्रतिमा चालुक्य काल की प्रथम जानी मानी तथा स्वतंत्र प्रतिमा है, जो एक काली चट्टान पर है। (नागराज्जय्य हंप 2000-244) पुरालेखिय साक्ष्य यह निश्चित करते हैं कि मल्लसमुद्र यह एक बहुत है प्राचीन स्थान है तथा मुलगुंद तथा पुलिगेरे जो कि दो अत्यंत प्राचीन जैनपीठ है, के साथ उसका बहुत करीबी संबंध है। पद्मासन मुद्रा में बैठी एक अन्य जिन की ध्यान-धारणा में लीन प्रतिमा, जो अमरेश्वर मंदिर के बाहर एक छोटे से कक्ष में कृष्ण नदी की ओर उन्मुख, प्रतिष्ठापित की गई है। यह प्रतिमा सकल आंद्रदेश के जिन शिल्पों में एक मात्र है। इसकी दो तहों वाली केश रचना, पीछे की ओर मुडे केशों के मध्य में उष्निषा, जो उत्तर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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