________________ 148 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य से युक्त पूर्वमुखी जैन मंदिर, मकान, जिन की सबसे प्राचीन प्रतिमा जो कि बादामी राजा के शासनकाल की हो सकती है। __ तीन प्राचीन जैन मंदिरों में एक जो गाँव दक्षिण भाग के छोर पर कुम्हारों की गली में है, जो कि सबसे वैशिष्ट्यपूर्ण है। स्थानीय लोग इस मंदिर को कंचुगारस बसदी के रूप में जानते हैं। जाहिर है यह मंदिर व्यापारी वर्ग ने बनवाया था। दाहिने दरवाजे के द्वार के उपरी भाग पर एक पुरालेख है जिसमें लिखा है कि मसणय्या ने जैन पार्श्व मंदिर बनवाया था। माघनंदियपि के एक सामान्य शिष्य मतिसेटि ने इस मंदिर को मध्यकाल में फिर से बनवाया था / (infra) पूर्व दिशोन्मूखवाले पत्थरों में बनवाये खंडित जिन पार्श्व मंदिर में गर्भगृह, खुला दालान, कक्षासनवाला प्रवेश दालान है। इसका अधिस्थान कपोटबंध वर्ग का है। नवरंग के चार स्तम्भ पूर्वी राष्ट्रकूट काल के हैं। पाँचवा स्तम्भ भी जो बायीं ओर के दो खंभों के मध्य खड़ा है और एक टूटा हुआ खंभ उसको आधार देने के लिए उसके ऊपर रखा गया है, वह सब नौवीं सदी की शैली का है। (नागराजय्य, हंप 2000 :248). बादामी की जैनगुफा के अंदर आसनस्थ यक्ष सर्वाह्न का शिल्प दक्षिण का सबसे प्राचीन शिल्प है जबकि गडिकेश्वार में सर्वाह्न की आसनस्थ स्वतंत्र प्रतिमा भी प्राचीन है। ये दोनों आकृतियाँ इस पुस्तक के लेखक ने पहचान ली है। नष्टप्राय गर्भगृह की जिन पार्श्व की सुंदर प्रतिमा अद्वितीय है। ऊपर की गोल प्रतिमा भव्य प्रतिमा के रूप में जानी जाती है। गहरी तपस्या में बैठे पार्श्व की शिल्पाकृति के पीछे एक आभामंडल है जो प्रकाश विकीर्णित कर रहा है। उसके सिर पर धरणेंद्र अपने तीन फनों का छत्र बनाए खडा है। छत्रालय की बगल में चामरधारियों की ऊँची शिल्पाकृतियाँ तथा चैत्यवृक्ष की आकृतियाँ दिखा देते हैं। परिकरों के सुंदर शिल्पों का विवरण बादामी-चालुक्य शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें उसकी कोमलता तथा वैशिष्टय एक साथ नज़र आता है। शिल्पकारों का तकनिकी कौशल उच्चतम सौंदर्यदृष्टि के साथ मिलकर अन्य घटकों के उचित अनुपात में मिलता है। दुर्भाग्यवश उसका सिंहासन गायब है। अप्रतिम तथा सममित प्रतिमा सातवीं तथा आठवीं सदी के मध्य बनी थी, संभवतः राजा विजयादित्य सिंहासनाधिष्ठ था। जैन मंदिर के मार्ग पर जाते समय कई प्राचीन आकृतियाँ टुटे खंभे आदि एक ओर फेंके हुए मिले जाते हैं। मार्ग में ऊँचे से टीले पर पडे अवशेषों में आसनस्थ द्विभुज यक्ष के शिल्प के शरीर के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org