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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 147 परमार राजा के कवि धनपाल ने प्रथम तीर्थंकर के समर्पित जैन मंदिरों का वर्णन किया है। __एककंग (पूर्व हिमालय का पहाडी भाग) की पहाडी पर दिव्यराम के मध्य में बने जिनेन्द्र भवन चार देवतागार गोपुर द्वारों तथा प्राकार प्रतोलिकों से घिरा है तथा पश्चिमी दीवार पर एक संगमरमर की शिला लगाई गई है जिसपर एक प्रशस्ति खुदवाई गई है। (घनपाल-तिलकमंजिरी द्वितीय संस्करण) कुछ ऐसे विवरण रविकीर्ति के जिनेन्द्र भवन पर लागू होते हैं। ___ यह जिनेंद्रभवन रविकीर्ति तथा शिल्पकार की सौंदर्यदृष्टि को अच्छी तरह से प्रतिबिंबित करता है। मंडप सामने वाले दालान तक जाने वाली एक तरफ की दीवार, खंभों वाला प्रशस्त कक्षासन वाला दालान सामने वाली सीढियाँ निश्चित ही बाद में बनवाई गई हैं। कई सारे पुरालेख ऐसे हैं जो जैन जाति के विस्तार तथा विकास, प्रचुर सहायता तथा निधियों की साक्ष्य देते हैं। जिनेंद्र भवन के निर्माण के बाद जैन उत्सव तथा सांस्कृतिक गतिविधियाँ को इस युग में अधिक प्रोत्साहन मिला। ईसा पूर्व युग के जैन अवशेषों से कोपणनगर परिपूर्ण है, जो इस युग का जैन प्रभाव का सबसे शक्तिशाली जैन स्थान था। सातवीं तथा आठवीं सदी में यह जैनमुनियों का आश्रय स्थान था और इस स्थान के पुरालेखों पर जैन संत जैसे सर्वनंदी, तथा जटासिंगनंदि आचार्यों का उल्लेख हुआ है जिनका कोप्पळ में देहांत हुआ था। स्थानीय परंपरा में कोप्पळ बसतियों के लिए जाना जाता है जहाँ कभी कम से कम 772 बसदियाँ प्राप्त हुई थी और इस स्थान के आसपास प्रचुर मात्रा में इसकी साक्ष्य के अवशेष भी प्राप्त हैं। इस प्रकार आडूर के पास पुलिगेरे, पलसिगे के पास ओक्कुंड, ऐहोळे के पास किसुवोळाल अथवा पट्टदकल तथा कोपणनगर अथवा कोप्पळ जो कविराजमार्ग में तिरुल गन्नड प्रदेश की सीमा के रूप में वर्णित हैं, जो जैनों तथा जैन संस्कृति के केंद्र थे, जहाँ जैन कवियों तथा दार्शनिकों के द्वारा कन्नड भाषा का पोषण एक साहित्यिक अभिजात भाषा के रूप में किया। (K1: VOL.1. No.3. Intro) पुरालेख में गडि केशवार (गुलबर्गा जिला चिंचोळि तालूका) का उल्लेख केशवपुर के नाम से है जो कि एक अन्य प्रमुख केंद्र तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था जो जैन जाति के साथ चलता है। हालाँकि विद्यमान जैन पुरालेखिय साक्ष्य मध्यकाल से मिलते हैं, ग्यारहवीं सदी का अपने विस्तार तथा पुनर्नवीकरण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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