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________________ 134 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य आदिकदंबों के राजाओं ने विशेषरूप से नहीं किया है। बादामी चालुक्यों का ही वह युग था जहाँ से अर्हत महावीर, पार्श्व तथा बाहुबलि के शिल्प या तो शिल्पाकृतियों में या फिर स्वतंत्र शिल्पों में पाये गए, जो मंदिरों के गर्भगृहों में प्रतिष्ठित किए गए थे। उक्त युग में जहाँ तक राष्ट्रकूटों तथा चालुक्यों का ताल्लुख है, यह कहा जा सकता है कि मंदिर शिल्पकला को निरूपित करने में इनकी संरचनागत परंपरा की सहभागिता रही होगी। मंदिर निर्माण की कला को बाद में काफी प्रोत्साहन मिला और कई जगहों पर जैन मंदिर निर्मित होने लगे। चालुक्य धार्मिक कला के प्रमुख संरक्षक थे। कर्नाटक में पूर्ण विकसित जैन कला तथा शिल्पकला के दर्शन इसी में होते हैं। वैभवसम्पन्न तथा अप्रतिम जिनालयों का निर्माण हुआ तथा जिनों की आँख भरने वाली प्रतिमाएँ तथा अन्य अधिनस्थ देवताओं की प्रतिमाएं तराशी गई। कुछ महत्वपूर्ण जैन मंदिरों पर विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है। ___ सातवीं सदी से आडूर एक प्रसिद्ध तथा महत्वपूर्ण जैन संस्थापन के रूप में फूला फला। आडूर इस शब्द की व्युत्पत्ति उसके प्राचीन नाम पांडियूर से हुई है, जिसका एक अन्य नाम गांगी पांडियूर भी था। भाषायी परिवर्तन के कारण 'प' का 'ह' हुआ और 'पांडियूर', 'हाडियूर' बना और बाद में हाडियूर' का 'आडूर' हुआ। आडूर में स्थित दो जैन मंदिर, एक जो शहर में बनवाया गया और दूसरा, जो गाँव के बाहर, दोनों कीर्तिवर्म द्वितीय के शासनकाल के हैं। आडूर (750) का जुडा हुए शिलापट्ट पर आठवीं सदी के दो अभिलेख हैं जो जिनालय तथा दानशाला के कबारे में बताते हैं। धर्मगामुंड ने उसकी सुरक्षा तथा वृद्धि के लिए पच्चीस निवरत्न की ज़मीन दान में दे दी थी। शिलालेख ने परलूरु गण के वंश तथा चेदिया प्रमुख के तीन नामों को उपलब्ध कराया है। विनयनंदी, ग्राम प्रमुख धर्मगामुंड के काल में आडूर तथा परलूरु क्षेत्र का धर्मगुरु था। रविशक्ति ने अपने अधिपति मंगलेश (तस्यानुशासनेन) के कहने पर सामंतों के अधिकार में रहने वाले किरुव केरे ग्राम में स्वामी शांतिनाथ को पचास निवर्तन की उपजाउ जमीन दान में दी थी। परलूरु संघ के श्रीनंदी के शिष्य अभयनंदी ने यह दान ग्रहण किया था। __ शांतिवर्म के पुत्र मृगेशवर्मा (455-80) के कार्यकाल के तीसरे वर्ष (458) के देवगिरि शिलालेखपर बृहत परलूरु के जिनालय की मरम्मत तथा पूजा-प्रार्थना हेतु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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