________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 135 जमीन दान का उल्लेख किया गया है साथ ही अर्हत की प्रतिमा को फूलों से आभुषित करने के लिए भी ज़मीन दान देने का उल्लेख किया गया है। इस दान में चालीस निवर्तन की काली माटी की जमीन, चार निवर्तन की खेत तथा जिनालय के बाहर एक निवरत्न जमीन का उल्लेख दर्ज है। यह शिलालेखएक पवित्र भोजक दामकीर्ति द्वारा लिखा गया है। परलूरु संघ के साथ जो बृहत विशेषण जोडा गया है वह यही दर्शाता है कि उस समय इस स्थान को बहुताधिक महानता प्राप्त थी। उनके उत्तराधिकारी होने के कारण चालुक्य ने प्रेरित होकर परलुरु संघ को निरंतर दान देना जारी रखा। परलुरु संघ की यह भव्य संस्थापना राजधानी बादामी से काफी दूर नहीं है। ___ श्रीपाल ने अपने दादा धर्म गामुंड से बनवाये जिनेंद्र भवन के परिसर में ही शिलापट्ट का अभिषेक किया था। आडूर के परलूरु चैत्यालय के प्रमुख अधिकारी प्रभाचंद्र गुरावर दानी थे। इस जगह का प्राचीन नाम गागी पांडियूर था। सिंदरस का आडूर पर शासन था। ग्रामाधिकारियों तथा शेरिफों ने आठ एकड खेत जमीन दान में दी थी। चैत्यालय के प्रमुख प्रभाचंद्र को गुरावर कहा जाता था। जैन आचार्यों को अक्सर ऋषि, श्रमण, या सवण कहा जाता था, किंतु कभी कभी गोरव शब्द को भी नामों के साथ जोड दिया जाता था, जैसे मोनिगोरव, जो मोनिभट्टार के समान ही रहता था। विद्यानंद, वासुदेवगुरु तथा प्रभाचंद्रपरलुरु गणग्रणी थे। विनयनंदि ने तीर्थंकर के प्रथम मुनि इंद्रभूति की तरह ही स्वयं को बनाया। उसका शिष्य वासुदेवनंदी धर्मपिता बना ओर अपने अगाध ज्ञान के बल पर शिक्षकों का शिक्षक के रूप में आचरण करने लगा। मुनि वासुदेव का शिष्य प्रभाचंद्र-गुरावर परलुरु चेदिया का उत्तराधिकारी बना। धर्मगुरु प्रभाचंद्र, विनयनंदि का प्रशिष्य, को राज-पुजिता बनने का सम्मान मिला, तदनुसार उस समय का शासक राजा कीर्तिवर्म द्वितीय था। प्रभाचंद्र का अंतेवासी शिष्य श्रीपाल, जो कि धर्मगामुंड का प्रपौत्र था, स्थानीय नेताओं से मिलकर, कागालूरु के पश्चिम की आठ एकड खेत जमीन (टैंक के नीचे की जमीन), जिनेंद्र भवन की पूजा प्रार्थना हेतु दान में दी थी। प्रभाचंद्र इस दान के ग्राही थे। आठवीं सदी के रिकार्ड वर्धमान का आह्वान करते हैं, संभव है कि धर्मगामुंड द्वारा बनवाया गया मंदिर महावीर वर्धमान को समर्पित किया गया हो, तो इस आलोक में, महावीर का जिनालय सबसे प्राचीन मंदिर प्राप्त होने का विशेष श्रेय आडूर को जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org