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________________ 126 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य के प्रकाश में करना चाहिए। चालुक्य युग के शिल्पकारों ने अपने विषय-वस्तु को उत्कृष्ट समानुपातिकता तथा लालित्य प्रदर्शित करने में विजय पायी हैं। उन शिल्पों का लचीलापन इतना सुंदर है कि वे पूरी रचना को एक संगीतात्मकता प्रदान करता है। पार्श्व मूलनायक का शिल्प जो बहुत ही सुंदरता के साथ खडा किया गया हैं उसमें एक तरह की सादगी तथा चारूता नज़र ती है। अतः यह उपलब्धि प्रशंसा से भी परे है। ___अंबिका की प्रतिष्ठा के समानांतर अन्य दो शासन देवता पद्मावती तथा ज्वालामालिनी को भी उच्च पद पर आसनस्थ किया गया। इस काल में उन्होंने लोगों से प्रशंसा अर्जित की। पद्मावती का यह महत्व गुंड़नापुर (बनवासी) में हाल में किए गए उत्खनन शिल्पाकृतियों तथा प्रतिमाओं में प्रतिबिंबित होता है। जैनेतर साहित्य में देवी पद्मा (पद्मिनी) से सब परिचित हैं। पद्मावती यह नाम भी बिल्कुल जैन नाम है। पारंपरिक साहित्य में वह अद्वितीय स्थान ग्रहण करती पद्मावती पंथ की विशद तथा ऐतिहासिक रूप से चर्चा करते समय पी. बी.देसाई लिखते हैं कि, 'कहानी के अनुसार, श्री वेंकटेश, तिरूपति के देवता, ने पद्मावती से विवाह किया। जिसका वर्णन भविश्योंत्तर तथा स्कन्धपुराण में किया गया है। यह भी ध्यान देने की बात है कि देवताओं के वंश ब्राह्मण परंपरा में भी पद्मावती का उल्लेख नहीं है। अतः यह कहना अतर्कपुर्ण नहीं होगा कि जैन देवता पद्मावती ने ब्राह्मणि धर्म के नेताओं को अपने काबू में आने को किया।' (देसाई पी. बी 195772) पद्मावती सांतरों, गंगो तथा आदिकदंबों का इष्टदेवी थी जो समृद्धि, संपन्नता तथा कल्याणकारी देवी के रूप में स्वीकारा गया था। अभिष्ट वर प्रदायीनी कहकर उसका वर्णन किया जाता था। कोण्णूर के मध्यकालीन पुरालेख ऐहोळे के व्यापारियों का वर्णन इस प्रकार करते हैं, सत्य राधेयस शौचं गांगेयस तथा 'श्री पद्मावती देवी वरप्रसादस / दिसचस्प बात यह है कि ऐहोळे का व्यापारी वर्ग पद्मावती को अपनी ईष्टदेवता मानते हैं न कि अंबिका को।' 'अपराजित पृच्छा' में पद्मावती देवी को 'कुक्कुटसर्पा' कहा गया है। रूपमंडन उसका परिचय 'कुक्कुटोरगस्ता' से करते हैं। अचारादिनकर में उसे कुक्कुटसर्प पर बैठी देवी कहा गया हैं। त्रिशष्टि-शलाका-पुरुष-चरित में कुक्कुटसर्प को उसका वाहन बताते हैं। अन्य जगहों पर उसे कुक्कुटसर्प तथा नाग उसके पनावित के चिह्न के रूप में स्वीकारे गए हैं। ध्यान में रखने की बात यह है कि होम्बुज क्षेत्र के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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