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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 125 रही हैं। समतल पाषाण देवी के शरीर तथा हाथों एवं आभूषणों तथा अन्य बातों को अच्छी तरह से तराशने में मदद करता है। तीर्थंकर की एक छोटी-सी प्रतिमा देवी के मुकुट पर मिलती है जो यह साबित करता है कि वह किसी एक तीर्थंकर की शासन देवता है। इस यक्षी के अन्य लक्षण हमें उसको पहचानने में मदद करते हैं। उसके तीन लक्षण एकदम उभरकर आते हैं। उसके मुकुट के एक तरफ से ज्वालएँ उठती हैं। दिगंबर जैन पंथ के साहित्यानुसार देवी यक्षी के आठ हाथों के अन्य वस्तुएँ तथा उसका वाहन संभवतः भैंस, जो सभी ज्वालामालिनी से जुडे लक्षण हैं, जो कि चंद्रप्रभा तीर्थंकर की यक्षी थी। शिल्पगत वैशिष्ट्य तथा ज्वालामलिनि तथा श्याम की शिल्पाकृतियों की विस्तार से चर्चा करते हुए शेट्टर ने उनको पूर्वी चालुक्यों के काल की माना है, यक्ष (श्याम) तथा यक्षी (ज्वाला) के शिल्प चालुक्य युग के हैं। यक्षी के शिल्प का लचीलापन तथा उसकी नाजूक देह हमें मेगुडी मंदिर में स्थित अंबिका की प्रतिमा की याद दिलाता हैं। आभुषणों का उचित उपयोग, उसके गोल वक्ष, पतली कमर आदि इस कला की खास विशेषता है। इन प्रतिमाओं के गोल कंगन तथा पायल उन शिल्पाकृतियों के समान हैं जो कि लाड-खान के स्तम्भों में खुदवायीं गई हैं। यक्षी का यज्ञोपवित भी नौ नंबर के मंदिर की छत पर पाये जाने वाली ब्रह्मा की प्रतिमा के समान है। लेकिन इससे भी अधिक साम्य हमें यक्षों की प्रतिमाओं में प्राप्त होता है खासकर आसन, योगपट्ट, तथा बादामी की गुफाओं के अंतरालों में पाये जाने वाले यक्षों के लघुशिल्पों में यह साम्य विशेषकर दृष्टिगोचर होता है। ये सार-तथ्य यही सिद्ध करते हैं कि यह दो शिल्प पूर्वी चालुक्य काल के शिल्पकारों के हैं। हो सकता है कि वे गुफाओं तथा मेगुडी मंदिरों से कुछ दशकों के बाद के हो किंतु वे आठवीं सदी के बाद की नहीं हो सकती। (शेट्टर 320) ज्वाला उभरे हुए स्तम्भाधार पर लगभग अंबिका की प्रतिमा के समान अपना बायां पैर लटकाए बैठी हैं। किंतु उसने अपना दाहिना पैर स्तम्भाधार पर रखा है अंबिका की तरह उन्होंने उसे सीधी नहीं रखा है। खैर, लटकता हुआ पैर तत्कालीन शिल्प शैली रही होगी। पद्मावतीदेवी एक अन्य शासन देवी पद्मावती देवी के शिल्प का विचार अन्य समान शिल्पों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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