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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 127 पार्श्व के शिल्प का कुक्कुटसर्प का चील अप्रतिम है और संभवतः अपनी तरह का एक मात्र उदाहरण है।' (नागराजय्या, हंप : जिन पार्श्व मंदिर: 1990:50). बादामी तथा ऐहोळे की गुफाओं में पद्मावती को जिन पार्श्व के दाहिने बाजु में छत्र पकडे हुए दिखाए जाने की प्रथा, को बाद में संभवतः निकाल दिया गया हो क्योंकि उसे जिन की बायीं तरफ दिखाया जाने लगा। पद्मावती अथवा अन्य नागारानियाँ को, आधे मनुष्य तथा आधे सर्प के शरीर में चित्रित करने की पद्धति, चालुक्यों से चलती आयी है। प्रिन्स ऑफ वेल्स के म्युजियम (मुंबई) में पार्श्व, की कांस्य प्रतिमा की बगल में (8वीं सदी) धरणेंद्र तथा पद्मावती को अर्थ मनुष्य तथा अर्ध सर्प शरीर में हाथ जोडे दिखाया गया है। ___ कई बार प्रार्थना मंदिरो के पुरातत्वीय लक्षण हमेशा विश्वासों के अनुसार नहीं जाते, किंतु काल तथा जिस प्रदेश में वह मंदिर बनाया गया है, के अनुसार होते हैं। ___ पुरातत्वीय साक्ष्य यह बताते हैं कि छठी सदी के प्रारंभ से पद्मावती दृश्यमान होने लगी। कर्नाटक में सबसे प्राचीन ज्ञात प्रदर्शन ऐहोळे तथा बादामी की गफाओं में प्राप्त होते हैं किंतु दोनों शिल्प शिल्पाकृतियाँ हैं। तथापि शिल्पाकृतियों की मुद्राएँ तथा भंगिमाओं की अभिजात चारुता को परवर्ती आने वाले शिल्पकारों तथा चित्रकारों को चुना। तो भी पद्मावती की स्वतंत्र प्रतिमाएँ इस काल में विद्यमान नहीं - है, सिवा गुंडापुर की छिन्न भिन्न मुखवाले शिल्प / इतना कहना ठीक होगा कि शिल्प में अत्यंत सलीकेवार शिल्पगत तत्व लाए गए हैं। कर्नाटक तथा दक्षिण में पद्मावती पंथ की वृद्धि के स्रोत इन गुफाओं के शिल्पों में हैं। पद्मावती को पार्श्व के दाहिने पक्ष में दिखाया गया है। किंतु शासनदेवियाँ जो कि जिन के दाहिने बगल में दिखाया गया वह आम नहीं है। इस पुस्तक के लेखक ने ई. 1999 में मुळगुंद जिन मंदिर में ई.स. 902 का एक अद्वितीय शिल्प खोजा। यह लालित्यपूर्ण शिल्प अत्यंत सुंदरता से तराशा गया है। जिसे पीछे की ओर संस्कृत पुरालेख है। संक्षेप में, दोनों तरफ से यह शिल्प अतिसुंदर है। एक ओर, एकदम प्रारंभ में, पुरालेख की शुरुवात में, शिल्प के ऊपरी भाग में, चैत्यालय पंथ का शिल्प है। चार खंभों के अंदर तीन कक्ष है। दाहिनी तरफ गाय और बछडे की शिल्पाकृति है, मध्य भाग में पीठ पर पद्मासन में बैठे जिन की शिल्पाकृति है, जिसके ऊपर त्रिछत्र तथा चामरधारी हैं। तथा बायीं तरफ आम्रवृक्ष के नीचे अंबिका ललितासन मुद्रा में बैठी हैं, जिसने अपने दाहिने हाथ में आम का फल पकडे रखा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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