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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 117 मर गयी और फिर उसने अंबिका यक्षी के रूप में जन्म लिया। फिर सोमशर्मा की भी मृत्यु हुई और उसने सिंह के रूप में जन्म लिया और अंबिका का वाहन बन गया। इसी प्रकार की समान घटनाएँ परवर्ती क्षत्रप के युग में (प्रथम-द्वितीय शताब्दी) गिरनार पर्वत में घटित हई होगी और फिर अंबिका की जन्म की कथा को भी भिन्न भिन्न आयाम प्राप्त हुए होंगे। इस कथा में अंतर्जातीय विवाह के बीज हैं। अंबिका की कथा में लोकभाव तथा मत मतांतरों का संगम हुआ है। यह देवी नेमिनाथ के जीवन के साथ अभिन्नता से जुडी हुई है। सौराष्ट्र के गिरनार पर्वत से पार्श्वभूमि पर अंबिका और नेमिनाथ की कथा चलती है और तुरंत ही यह कथा दूर तक फैल गयी और सातवीं सदी में चालुक्यों के शासनकाल में पहुँचकर राज्य की देवी, . परिवार की देवी, सेवकवर्ग का स्थान प्राप्त कर गई। इस तरह अंबिका की प्रतिमा तथा उसके पंथ का सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक परिवेश तथा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अनुशीलन करना चाहिए। प्राचीन कन्नड कवि पोन्न (960) ने इस देवी का आह्वान किया है और अंबिका की संपूर्ण कथा का सारांश एक चरण में प्रस्तुत किया है। (नागराज हंपा- (संपा.) शांतिपुराणं-1982) पोन्न ने जैन मुनि वरदत्त तथा पुत्र शुभांकर तथा प्रभांकर के नामों का उल्लेख किया है। उर्वरता का प्रतिनिधित्व करने वाली मातृदेवी अंबिका ( अम्बा, आम्रा बहुपुत्रिका . कुष्मांडिणी बाला देवी) तथा 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ की शासनदेवी अंबिका सबसे अधिक प्रसन्न करनेवाली प्रिय यक्षी थी। भक्तगण संतान प्राप्ति के लिए उसकी मन्नत माँगा करते हैं। दो पुत्र तथा आम्रखंबी उर्वरता का प्रतीक है तो सिंह शक्ति का संकेत है। परवर्तीकाल में शक्ति को दर्शाने वाले अन्य घटक जैसे तलवार, घंटा, अंकुश, फंदा तथा वज्र तश्तरी आदि का समावेश हो गया जिनेश्वरसुरि लिखित अंबिकादेवीस्तुति में (12 वीं सदी) उसे जगज्जननि तथा जगत स्वामीनी कहकर उसका आह्वान करते हैं। जिन की बराबरी में ही साहित्यिक तथा शिल्पगत डाटा दोनों अंबिका के पद के उत्थान की ओर संकेत करता है। अंबिका उस युग में काफी लोकप्रिय देवी थी। (शाह यू.पी. Iconography of Jaina Goddess Ambika- Journal of University of Bombay- Vol. IX. 1940-41. Pp. 147-69). भैरव पद्मावतीकल्प में अंबिका को आम्रकुस्मांडिनी के नाम से संबोधित किया गया है। आम्रवृक्ष के साथ उसका संबंध दर्शाने के कारण अंबिका को एक और उपनाम मिला आम्र, और वह मातृदेवी होने के कारण वह अंबा भी कहलाती है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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