________________ 118 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य और उसका वाहन सिंह होने के कारण उसे सिंहवाहिनी भी कहा गया है। हरिभद्रसुरि (500-640) उसका वर्णन अंबा कुष्मांडी कहकर पुकारते हैं। पद्मावती की तरह अंबिका भी वन्य-देवता है, जिसका संबंध आम्रवृक्ष से है। किंतु आश्चर्य की बात यह है कि वह एक मात्र यक्षी या शासन देवता है जो वृक्ष के नीचे खडी या बैठी है। क्योंकि यह कुष्मांड वर्ग से होने के कारण तिलोयपन्नत्ति के अनुसार अंबिका को कुष्मांडी (कुष्मांडिनीदेवी) भी कहा जाता है। ई. 634 के ऐहोळे की अंबिका की चर्चा करते समय हम बादामी की जैन गुफाओं में स्थित इसी देवी की प्राचीन प्रतिमाओं के महत्व की उपेक्षा नहीं कर सकते जो कि संभवतः कुछ दशक पूर्व की होगी जो उत्तरी दीवार के मंडप पर तराशी गयी थी। __ अन्य 23 यक्षियों की तरह अंबिका को भी जिन नेमिनाथ (22 वें तीर्थंकर) की बायीं ओर अपने दो पुत्रों के साथ बैठा हुआ दर्शाया गया है। सामान्यतः उसके दाहिने हाथ में आम का गुच्छ दिखाई गया है। अंबिका को जिन पर अवलंबित नहीं दिखाया गया है। वह स्वतंत्र हैं यही उसके पद को उन्नत करता है। इस आकृति की एक अन्य विशेषता यह है कि अंबिका स्वयं किसी बच्चे को उठाए हुए नही हैं। बल्कि दो सेविकाएँ उसकी बगल में बच्चों को लिए हुए हैं। और एक असामान्य बात यह है कि अंबिका बडी भव्यता के साथ केंद्र में बैठी हैं और उसे सेविकाओं ने घेरा है तथा उनमें से तीन दाहिनी ओर दो और बायीं ओर एक हैं। इस अवधारणा से प्रेरित होकर शिल्पकारों ने एलोरा की गुफाओं में अंबिका को अनुयायियों के साथ दिखाया है। अन्य चरित्रगत प्रवृत्तियों में एक और दुर्लभ विशेषता पर ध्यान आकर्षित करना जरूरी है। देवी ने अपना दाहिना पैर बायीं जंघा के थोडा ऊपर लेकर सीढियों पर अपना पैर रखे हुए हैं और उसका बायां पैर बडी सुंदरता के साथ लटकता हुआ दिखाया गया है। अब तक इस पर अधिक गौर नहीं किया गया था। सामान्यतया लगभग हर प्रतिमा में देवियों को ललितासन में दिखाया गया है। लेकिन नियम के कुछ अपवाद भी मिलते हैं। मैं यहाँ कुछ उदाहरण देना चाहूँगा जहाँ अंबिका ने अपना दाहिना पैर बायीं जंघा पर या फिर सीढी या फिर नीचे की सीढी पर रखा है। 1. नौंवी सदी की अकोटा में स्थित अंबिका की कांस्य की प्रतिमा (SI No. 7 p. 46) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org