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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 115 दक्षिण में प्राप्त है। फिर ऐसा कौन सा स्त्रोत था जिस पर रविकीर्ति अंबिका की उल्लेखनीय प्रतिमा को रूपाकार दिया। इस पर विस्तार से चर्चा की आवश्यकता है। अंबिका की मूर्तिगत प्रवृतियों का प्रस्तुतीकरण, छठी सदी से धीरे धीरे होने वाला विकास ही है। जो गिरनार पर्वत की ढलान पर बसे गिरिनगर की कहानी पर आधारित है। नागकुल के कवि विमलसूरि ने अपने महाकाव्य पउम चरिउ (सी.ई 473) में सिहंवाहिनियों का उल्लेख किया है। जो संभवतः सबसे प्राचीन स्त्रोत है, जहाँ से इस परिकल्पना का उत्तरोत्तर विकास होता गया। जिनभद्रगणिन क्षमाश्रमण अपने आत्मकथन विशेषवश्यकभाष्य में अंबाकुष्मांन्ड का आह्वान करते हैं। चर्चाधीन पंथ के विकास से जुडे स्थानों में (चाहे गिरनार से ही उत्पन्न हुए हैं) अकोटा (वडोदरा, बरोडा, गुजरात) में शिल्पगत प्रतिमा को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कांस्य प्रतिमाओं के ढेर में बीस से अधिक (जो कि छठी तथा आठवीं सदी की हैं) प्रतिमाएँ अंबिका की हैं। अब तक की विद्यमान अंबिका की प्राचीन प्रतिमाएं छठी सदी के मध्य तथा उत्तरार्ध की है, जिसमें स्वतंत्र तथा जिन से संयुक्त दोनों का समावेश है और जो दो हाथोंवाली है और ये अकोटा (अंकोटक) की प्रतिमाएँ हैं। जिन से संयुक्त प्रतिमाओं में, अंबिका पहले तीर्थंकर ऋषभ तथा 23 वें तीर्थंकर 'पार्श्व का ही प्रतिनीधित्व करती हैं ना कि 22वें तीर्थंकर नेमी का। यह यही सूचित करता है कि नेमिनाथ की सेविका का, देवता के रूप में नेमिनाथ की प्रतिमा के साथ होना परवर्ती विकास ही है ऐसा कहा जाता है, जो कि सातवीं सदी के बाद ही हुआ है। तथापि ऐहोळे तथा अकोटा की प्रतिमाओं में बहुत कम समानताएं हैं। चर्चित कथा का उगम अंबिका का प्रकट रूप परंपरा में गहरी जड़ें जमा चुका है। सौराष्ट्र, गिरिनगर नामक शहरों में (आधुनिक जुनागढ) सोमशर्मा अपनी पत्नी अग्निला तथा दो पुत्रों शुभांकर तथा प्रभांकर के साथ रहा करता था। सोमशर्मा कट्टर जैन ब्राह्मण था और उसने अपने कुल के ब्राह्मणों को भोजन के लिए निमंत्रित किया। इस बीच जैनमुनि वरदत्त अपना आहार पाने के लिए चले जा रहा था। अगनिला ने ब्राह्मणों के लिए बनवाए पकवान इस जैन मुनि को खिला दिए। इस पर सोनशर्मा क्रोधित हुआ और उसने अपनी पत्नी पर केवल गुस्सा ही नहीं किया बल्कि उसे पीटा भी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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