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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 113 जोडा दिखाया गया है, जो या तो आसनस्थ या फिर खड़े हुए हैं। इस प्रकार 24 यक्ष यक्षीयाँ हैं। इस संदर्भ में, ऐहोळे तथा बादामी के शासनदेवता की प्रतिमाओं का ऐतिहासिक महत्व है। अंबिका ज्वालामालिनी तथा श्याम की स्वतंत्र प्रतिमाएँ इष्ट देवता की अनन्य तथा समृद्ध पदों को दर्शाती हैं। धरणेंद्र तथा पद्मावती की शिल्पाकृतियों को अन्य देवताओं के साथ विचाराधीन रखकर उस पर चिंतन मनन करना होगा। मूर्तिकला की शैली तथा अन्य विवरण का तत्कालीन युग तथा जैन शिल्पकला-साहित्य की पृष्ठभूमि पर चिंतन करने योग्य है। उक्त विषय पर तिलोयपण्णति जैसी पुस्तक को छोडकर अन्य पुस्तकें परवर्ती युग की है। जबकि इस पुस्तक में केवल पूर्वी साहित्य का ही आधार लिया गया है। (नागराजय्य हं.प.: यक्ष यक्षी :1976). __ प्राचीन काल से लोगों का बहुत बड़ा वर्ग स्थानिक देवी देवताओं, यक्षों, नागों तथा भारतीय मूल की स्त्री देवताओं की पूजा करता आ रहा है। जैन पंथ में भी विद्यादेवियों, श्रुतदेवी तथा यक्षीयों ने बहुत बडा स्थान ले चुकी हैं। शासनदेवताएँ भी षोडशोपचार के अधिकारी थे, किंतु अष्टविध अर्चना के अधिकारी नहीं थे। . (अभिषेक, पूजा, नैवेद्य, प्रदक्षिणा, नमस्कार, संगित, नर्तन तथा वाद्य) लौकिक लाभ पाने तथा प्रत्याशी इच्छाओं की आपुर्ति के लिए शासन देवताओं का आह्वान किया जाता है। ___24 यक्षीयों में से जिनको शासनदेवी कहा जाता है और जो इनमें से तीर्थंकरों से संबंधित है, पाँच बहुत लोकप्रिय हैं जबकि अन्य भी उतनी ही श्रद्धास्पद है। चक्रेश्वरी, पद्मावती, अंबिका, ज्वालामालिनी तथा सिद्धायिका, ऋषभ, पार्श्व, नेमि (अरिष्ठनेमि) चंद्रप्रभा तथा महावीर की परिकर देवताओं को अन्य देवियों से अधिक मान्यता मिली। विशेषकर तांत्रिक रीति रिवाजों में। संक्षेप में तत्कालीन युग के विद्यमान जैन अवशेषों के ढेर में मात्र अंबिका, पद्मावती तथा ज्वालामालिनी के शिल्प उभरकर दिखाई देते हैं। __ कुछ जैन प्रतिमाएँ परिकरों तथा शासनदेवताओं से रहित भी नजर आती हैं। कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित पांचफनों वाली अर्हत पार्श्व की अद्वितीय प्रतिमा (जो गदग जिले के मल्लसमुद्र गाँव में है जोकि जैन तीर्थ क्षेत्र मुळगुंद के मार्ग पर है) सातवीं सदी के उत्तरार्ध के आसपास की है। यह प्रतिमा किसी तीर्थंकर की सबसे प्राचीन प्रतिमा है। जो किसी मंदिर को समर्पित की गई है। किंतु हाल ही में जैन नारायण मंदिर (पट्टदकल्ल) के पीछे के स्थान पर किए गए उत्खनन में खोजी गई छठी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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