________________ 112 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य छठी सदी ऐसा काल था, जब जैनधर्म धर्म-समन्वय की ओर विकसित हुआ, जिसमें जिन, जिनशासन देवता, विद्यादेवियाँ, सरस्वती, लक्ष्मी आदि का समावेश था। मूर्तिकला की पृष्ठभूमि जिनपार्श्व की गुफाओं में स्थित शिल्पाकृतियों का मूर्तिकला तथा ऐतिहासिक महत्व तथा धार्मिक वैशिष्ट्य की पिछले अध्याय में विस्तार से चर्चा की गयी है। इन दो शिल्पाकृतियों की एक प्रवृत्ति यानि वह आकृतियाँ जो जिन को पंखा झल रही है, जिनको शासन देवता कहा जाता है। जो जिन के आदेश की रक्षा करती हैं। यह अध्याय प्रमुख रूप से इस काल की जिन से दुय्यम देवताओं के शिल्पगत महत्व की चर्चा के लिए रखा गया है। ___ ध्यान मुद्रा में बैठी महावीर की प्रतिमाएँ, शासन देवता ऐहोळे-बादामी की . गुफाओं में स्थित ध्यान मुद्रा में आसनस्थ शासन देवता के साथ महावीर की प्रतिमाएँ, अत्यंत प्राचीन उपलब्ध प्रतिमाएँ हैं। इंद्र ही प्रत्येक तीर्थंकर की सेवा करने हेतु शासन देवताओं की नियुक्ति करता है, अतः यक्ष यक्षीयों (जैन मंदिरों के देवताओं का वर्ग) ने भी श्रद्धा का पद प्राप्त किया था किंतु जिन के बाद है। यह अरण्यवासी आत्माओं वाले परिकर जिन के प्रबल भक्त होने के कारण अलौकिक गुणों से युक्त थे और पौरुषयुक्त शक्तियों को शांत करने योग्य थे। जाहिर है कि इन शासन देवता के इर्द गिर्द एक स्वतंत्र श्रद्धा का वलय निर्माण हुआ। दुर्लभ संयोग के कारण, शासन देवताओं की स्वतंत्र प्राचीन प्रतिमाएँ चालुक्य युग को समर्पित की गयी थीं। ये असाधारण शिल्प दोनों उभडी-शिल्पाकृतियों तथा स्वतंत्र शिल्प प्राचीन पारंपरिक ज्ञान के पूर्तिकर्ता थे, तथा उनके युग तथा सृजकों के स्वप्न थे। जैन मूर्तिकला का अपना एक व्याकरण है, जो कि जैन देवताओं के अध्ययन के लिए अनुकूल है। किसी भी पुरालेखिय साक्ष्य के अभाव में लांछन तथा जिन की सेवा करने वाले शासन देवी-देवताओं से हम तीर्थंकरों की पहचान प्राप्त कर सकते हैं और जैन पंथ की श्रेणी में उनका स्थान समझ सकते हैं। मूर्ति पर शिल्प की तिथि तथा नाम के साथ दाता का पुरा ब्योरा है, जिससे हमें प्रतिमा की आयु और क्षेत्र निश्चित करने में मदद मिलती है। ___ आमतौर पर जैन देवताएँ विशेष रूप से यक्ष और यक्षी जिन के परिकर देवताएँ हैं। मध्यकालीन मध्ययुग से प्रत्येक तीर्थंकर की बगल में सामान्यतः यक्ष यक्षी का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org