________________ 110 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य के बने जिनालय के परिसर में मोक्ष प्राप्त कर, पुरिमंडल के समर्पित शिष्य तथा अनुदेशक बलदेव में लगभग 700 में निषिधिका के पास अपने गुरु पुष्पदंत (पुष्पनंदी) के पास ही परमानंद की स्थिति को प्राप्त किया। (EC: IV : (R): कोल्लेगाल संख्या. 91-92. सातवीं आठवीं सदी). ऐ. के. शर्मा के अनुसार, पहाडी के सतही भूमि पर तिप्पुर की तरह हर जगह, ईंटों का कूडा फैलाया गया है। ___ लगभग एक मीटर घना कूडा, ईंटो की टूटी फूटी मूर्तियाँ, पत्थरों के ढेर आदि देखा गया (शर्मा ऐ.के. 1992:203) किंतु 1981 में ही एक आदमी ने कोळ्ळेगाल के ग्रेनाइट से भरे इस पहाडी की सफाई की थी। प्रो. एम.एस कृष्णमूर्ति ने इसी साल जब इस स्थान को भेंट दी थी, तब उन्होंने एक जैन मुनि के अत्यंत करीने से तराशे चरण खोज निकाले थे, जिसके इर्दगिर्द लिखा गया था, भटारर श्री पादक्के पानद गोरव रायवर...अर्थात भट्टर पानद गोरव रायवर के पवित्र चरणों का गोरव। पुरालेखकारों ने 8 वीं सदी में श्रवणबेळगोळ के पाद चरणों को पानद भट्टर के चरण है इसकी पहचान की है। (EC.11(R) No.11(9) :P.7). ___ दुर्भाग्य से छोटी सी पहाडी पर ईटों में बनाया जिनालय है और जहाँ दो निशिधि तराशे गए हैं, जो इन्ही वर्षों में पुर्णतः नष्टप्राय हो गए। इस पुस्तक के लेखक ने अपने क्षेत्रकार्य के दौरान यह देखा है कि यह स्थान निरंतर नष्टप्राय होता जा रहा है, जहाँ बड़े बड़े गड्डे निर्माण हो चुके हैं और जिनमें पानी भर गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org