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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 109 के विवरण से युक्त यह च न अब जर्जर हो रहा है और धीरे धीरे उसके टुकड़े गिरते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप खुदा हुआ विविरण मिटता चला जा रहा है। प्रो. श्रीनिवास रित्ती फिर भी जितना संभव हो सका उतना भाग अर्थ लगा पाए और अपने इस पुरालेख को प्रकाशित कर दिया। (श्रीनिवास रित्ती A New Early Chalukyas Inscriptiom, Journal of epigraphical society of India: vol VII (1980):1- 2) कुछ जैन मुनियों के नाम है जिन्होंने सल्लेखन का व्रत धारण कर मृत्यु का अवलंब किया, जैसे, इंद्रनंदी, सिद्धनंदी, जयनंदी, सिरिनंदी तथा अजितसेन आचार्य का शिष्य धर्णसेन आदि। मध्यकाल में कई जैन मुनियों के नाम अजित सेनाचार्य के समान मिलते हैं। किंतु इस नाम का एक और प्राचीन अनुदेशक हमें अरबळ्ळि निशिधि में मिलता है। पुलकेशि द्वितीय के कुछ ही पाषाण पुरालेख में से यह एक है और संभवतः बेळ्ळारी जिले में पाया जानेवाला / प्रथम शिलापट्ट है। पुरालेखों से स्पष्ट हो जाता है कि यह पहाड जैनमुनियों का वासस्थान था जहाँ कि प्राकृतिक गुफाएँ तप करने के लिए ही इस्तेमाल की जाती थी। सातवीं सदी के प्रारंभिक दशक की इन निशिधि से यह स्पष्ट हो जाता है कि कळ्वप्पु तथा कोपणचल के समान अरबळ्ळि पहाड़ भी प्राचीन समाधि पर्वत ही था, जो गुफाओं से युक्त था। सामान्य शब्दों में कहा जाय तो अर्बली निशिधि (लगभग 630 ए.डी.) सोसले निशिधि (लगभग 500 सी.ई) के बाद की है और कळ्वप्पुगिरी की समकालीन है। अरबळ्ळि पुरालेख की भाषा प्राचीन कन्नड़ है। महत्वपूर्ण जैन मुनियों के कारण कित्तूर संघ संपन्न हुआ। कित्तूर संघ के धर्मसेन गुरुवडिगळ तथा उनका शिष्य बलदेव गुरुवडिगळ सांतवीं सदी के कळ्वप्पु के पुरालेख में प्रमुखता से दिखाई देते हैं। सातवीं सदी एक अन्य घोषणा पत्रों में जैन साध्वी नागमतिगंटि तथा अदेयरनाडु अर्थात अदेयराष्ट्र में चित्तुर के शिष्य मोनिगुरुवडिगळ का उल्लेख मिलता है। अदेयराष्ट्र को आश्रयनदि-विषय भी कहा जाता है। यह शब्द वेल्लुर के पास उदयेंदिरम के प्रदेश से युक्त है। सदगुणों की खान तथा असाधारण उत्कृष्टता अर्थात अत्यंत सम्मानित संत पुष्पनंदि ने लगभग 700 में कोल्लेगाल (बस्तिपुर) के दक्षिण की पहाडी में इंटों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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