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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 105 चौथे नंबर का है। यह गुफा मंदिर एक लंबे पर्वत शिला में तराशा गया है जो कि राजधानी की किलेबंदी था। पार्श्व तथा बाहुबलि के शिल्प जैसे भव्यता की सीमा पर आकर ठहर से गए हैं। इन गुफाओं के प्रवेश भाग में चार बडे बडे स्तंभ तथा दो आयताकार खंभे हैं जो वीथिका को आधार दिए हुए खडे हैं। इसकी छत अपने युग की कुछ रोचक कथाओं से सुसज्जित हैं, जैसे उडते विद्याधर, खिले हुए कमल तथा मछली, मकर, तिमिंगल तथा नाग-कुंडल की आकृतियाँ आदि। अंदर का बरामदा भी चारों खंभों में विभाजित है, जो विशाल तथा आयताकार में है जिसके चारों ओर आला बनवाए गए हैं जिसमें जिन की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। उसका ऊपरी हिस्सा तरंग-बोधिका बल्बनुमा आयताकार में है। खंभों का कुछ भाग उबड खाबड है और प्रमुख स्तम्भ के पास के शहतीर मकरों के शीर्ष से अलंकृत हैं। यह सभी बहुत ही रोचक तथा प्रभावकारी है। . ___ बादामी गुफा मंदिर के महावीर का एक अन्य तराशा हुआ शिल्प ऐहोळे गुफा मंदिर के समान ही है, पर कुछ भिन्नता लिए हुए हैं। जिन एक बड़े से गद्देनुमा तकिए पर विश्राम कर रहे हैं और जिसके पीछे दो स्तम्भों का संतुलन संभालने वाला एक बड़ा-सा शहतीर है जिसके छोरों पर मकर शीर्ष हैं। यह शिल्पों की आम शैली है जो और भी जगहों पर देखी जा सकती है। अपने पीछे के पैरों पर खडे सिंह आयताकार खंभों से लगकर है, जबकि शहतीर के छोरों पर मकर . हैं। छत्र-त्रय के नीचे अर्धकमल में ध्यानमुद्रा में बैठे महावीर के सिर के पीछे प्रभावालि और चैत्यवृक्ष भी है। उडते हुए माला-धारक मंदिर की बगल में हैं। तीन तीन सिंहों में से दो आखिर में हैं जो यह सूचित करते हैं कि वह स्तम्भाधार सिंहासन है और मध्य का एक सिंह 24 वें तीर्थंकर महावीर का लांछन है। दो चामरधारी पीछे की ओर खडे हैं। महावीर का शिल्प चालुक्य युग का एक उदाहरण है जो कि छठी सदी के अंतिम दशक का है। - गर्भगृह की सीढियों की बगल में हस्ति-हस्त तथा प्रवेश द्वार पर अश्वपद है जो कि उल्लेखनीय है। बादामी की गुफा में तराशी हुई परवर्ती युग की महावीर की अन्य दो शिल्पाकृतियाँ जिन को कायोत्सर्ग मुद्रा में दर्शाती हैं। उनमें से एक चतुर्विंशति-प; कर्नाटक का अपनी तरह का एक प्राचीन शिल्प है। (प्रारंभिक दसवीं सदी) जैन-गुफा मंदिर शांति और आत्मविश्वास के प्रभा को उत्सर्जित करते हैं, 'जैनों के लिए बुराई खत्म करना यानि यह नहीं है कि हाथों में हथियार सौंप देना बल्कि दृढ़ संयमी तथा निर्भय होना है। गुफा मंदिर निर्माता, यात्रियों को यही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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