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________________ 104 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य ऐहोळे- मेणबसदी मंदिर सामने वाली बाडी के ऊपर, फूलों तथा पल्लवों से अलंकृत मंदिर की बगल में छोटे छोटे कक्षों से युक्त एक हॉल है, जिसके बायें वाला कक्ष अभी भी अपूर्ण है। गर्भगृह में स्थित विशाल सिंहासन बहुत ही आकर्षक है। सिंहासन पर आसनस्थ जिन को कईयों ने महावीर ही माना है। किंतु इसकी सही पहचान करना कठिन है। कारण स्तम्भाधार पर ध्वज नहीं है जो कि अपना प्रतीक चिह्न रखने का आम स्थान होता है। जिनके सिर के ऊपर का छत्र-त्रय तथा सिर के पीछे का प्रभामंडल उल्लेखनीय है। ___ महावीर की शिल्पाकृति, जिसमें महावीर छत्र-त्रय के नीचे पद्मासन की मुद्रा में बैठे हैं, एक बहुत बडे गद्दे के सामने है, और यह गद्दा समस्तरीय अर्गले के उपकरण के विरुद्ध रखा गया है और यह अर्गला दो खंभों के सहारे खडा है और खभों के छोर पर मकर है जो कि मात्र एक ही है। ऐहोळे के इस शिल्प की एक अन्य उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें दो पुरूष आकृतियाँ हाथ जोडकर प्रशंसा की मुद्रा में चामरधारियों के पीछे खडी है, और जिन्होंने किरिट-मुकुट जैसे खास आभुषण भी पहने हैं। * कर्नाटक में विद्यमान महावीर का यह शिल्प बहुत ही पुराना (लगभग छठी सदी का अंतिम दशक) होने के कारण इसकी अन्य विशेषताएँ संक्षेप में इस प्रकार करबद्ध तथा पाँचफनों वाला छत्र धारण करनेवाली एक महिला का अवक्ष शिल्प भी सिंहासन के दाहिने ओर है, जो संभवतः नाग सेविकाओं की प्रमुख है। इसके समान ही एक अन्य शिल्पाकृति भी बायीं ओर दिखाई पड़ती है पर उसके ऊपर मात्र एक फनवाला छत्र है, संभवतः यह नागराज की रानी है। * आसनस्थ जिन के पीछे का प्रभावलय साधारण सा है। * जैन प्रथा के अनुसार प्रभावालय के ऊपर छत्र-त्रय दिखाई पडता है। . शासनदेवता का अभाव तुरंत ध्यान में आ जाता है। . . चैत्यवृक्ष भी दिखाया नहीं गया है। बादामी गुफा मंदिर बादामी का गुफा मंदिर जिसे अत्यंत बारिकी से तराशा गया है, वह क्रम में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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