________________ 106 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य संदेश देना चाहते थे कि मन की शक्ति तन की शक्ति से अधिक ताकतवर होती है। जिसके बारे में जिन ने अपने उपदेशों में पहले ही बताया था। (Kurt Titze 1998:33-35) ___ बादामी से कुछ दूरी पर बनी अन्य तीन गुफाएँ जो बुद्ध, शिव तथा विष्णु को समर्पित हैं, हजारों साल पहले के परिकल्पना धर्म-निरपेक्षता की भव्य साक्ष्य है। वे धार्मिक समरसता, सह-अस्तित्व तथा धार्मिक-सामाजिक सहिष्णुता का अमूल्य संदेश ही देते हैं। नंदी तथा गोपिनाथगुट्ट गुफा (कोलार जिला) प्राचीन वैभवपूर्ण जैन तीर्थ के रूप में प्रचलित हुई। 750 का पुरालेख यह कहता है कि द्वापर युग में दशरथ के पुत्र रामस्वामी ने अर्हत के जैन चैत्य भवन की स्थापना की। उसके बाद पांडवों की माता कुंतिदेवी ने मंदिर के गर्भगृह का पुनः निर्माण किया। नंदी पहाड जैसे पृथ्वी का आभूषण ही था और मोक्ष प्राप्ति करने का मार्ग था, जो धरणेन्द्र की मणि की तरह चमक रहा था। यह पहाड, जो सभी पर्वतों में उत्कृष्ट था, जैनेन्द्र के कारण पावन हुआ, जिसमें प्राकृतिक गुफाएँ थी, जहाँ ऋषिगण योग साधना किया करते थे। .. कळ्वप्पु, कोगाळि, कोळ्ळेगाल, कोप्पळ, केल्लिपुसूर, अरबळ्ळि, केल्लंगेरे तथा बनवासी के साथ साथ यह नंदी पहाड चालुक्य साम्राज्य का एक और जैन तीर्थ है। अन्य स्थानों की तरह, मध्यकाल के बाद, नंदी पहाड भी जैनेत्तर पंथियों द्वारा हडप लिया गया। (शर्मा आय. के. कर्नाटक के गंगों के मंदिर : 1992:175-78). पल्लवों तथा चोळों (तमिलनाडु) ने भी इय्यक्कि पदारि (अर्थात यक्षी भरी) की पूजा को प्रोत्साहन दिया। (Sarma I.K.: Temples of the Gangas of Karnataka) निशिधि पुरालेख-शासन कर्नाटक में विद्यमान प्राचीन जैन पुरालेख यानि निशिधि पुरालेख और ये सब चालुक्य. युग के थे। उपलब्ध समीक्षात्मक रिकार्डों के अनुसार, क्रमानुसार सोरले (मैसुर जिला) आरबल्लि (बेल्लारी जिला) तथा कळ्वप्पु के निशिधि पुरालेख बहुत प्राचीन हैं, जिसकी तिथि ईसा. की छठी तथा सातवीं सदी की है। - जैन परंपरा में अन्य शरीर के अवयवों में पैरों (चरण) को ही पूजा के लिए चुना गया है। ये पदचिह्न जिन के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org