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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 101 प्रतिमाओं की शैली से अवगत रहा होगा। अतः हाथ तथा पैरों की मुद्रा, पार्श्व का बोधिवृक्ष, पीछे सिंहासन पर बना मृग का प्रतीक यह सब इस बात को सिद्ध करता है कि यह बुद्ध की ही प्रतिमा है। तथापि पीछे सिंहासन पर खुदवाए गए आभूषण तथा शंखचक्र स्पष्टतः से उनका विष्णु के साथ संबंध जाहिर करते हैं। स्थानीय साक्षों के आधार पर यह कहना अधिक उचित होगा कि प्रस्तुत प्रतिमा पुराणों के 'मायामोह' अथवा 'बुद्धावतार विष्णु' की होगी। शैली के आधार पर प्रस्तुत शिल्प का समय सातवीं सदी अथवा आठवीं सदी का प्रथम दशक रहा होगा।' (शेट्टी बी.वी. 1995:90) मैं भी शेट्टी जी से सहमत हूँ। ऐहोळे के संग्रहालय का एक और दुर्लभ शिल्प, एक पवित्र प्रतिमा किंतु चामधारियों से रहित, ग्रेनाईट में तराशी गई, देसाई जी के घर के पास है। यह प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा में पीठ पर आसनस्थ है। जिसके पीछे आयताकार का तकिया दिखता है। यह शिल्प आठवीं सदी का है। विद्वानों ने भी इसके संबंध में अपने विभिन्न मत दिए हैं। _ और एक उल्लेखनीय शिल्प है भट्टारक का, जो पद्मासन की मुद्रा में है और जिसने पतला सा वस्त्र धारण किया है और उसके केश उसकी छाती तथा कंधों पर गिर रहे हैं। यह शिल्प पीछे के प्रभावलय के कारण किसी देवता के शिल्प सा लगता है। (शिवराम मुर्ति 94) बुद्ध का धारण किया गया वस्त्र बहुत ही सफाई से तराशा गया है। यह शिल्प पूर्वी चालुक्यों के काल का ही है कारण इसमें पूर्वी चालुक्य युग के शिल्प कला की बहुत सारी समानताएँ पायी जाती हैं। (राजशेखर 186) इस पुस्तक के लेखक भी राजशेखर जी से सहमत हैं। ___ अर्हत पार्श्व तथा बाहुबलि की प्राचीन शिल्पाकृति उल्लेखनीय है कारण इसमें दिव्य किन्नर आसमान से अपने हाथ में फूलों की मालाएँ लेकर पवित्र जिन को समर्पण करने तैरते आ रहे हैं। क्योंकि वे जिन को अपने से भी अधिक श्रेष्ठ तथा आदरयुक्त मानते थे। यह इस और संकेत करता है कि अर्हत ने साधना तथा ध्यान धारणा तथा अध्यात्म में अधिक ऊँचाई प्राप्त की थी। पार्श्व का प्रोत्साहक धरणेंद्र से संबंध की साक्ष्य हमें प्रथम सदी में मिलती है, किंतु इसका उल्लेख लगभग दूसरी सदी के आगम साहित्य में आता है। ऐहोळे तथा बादामी की गुफाओं में उपसर्ग (आपदा) का प्रतिनिधिकरण अप्रतिम है। क्योंकि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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