________________ 102 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य अब तक के प्राप्त शिल्पों में यह सबसे प्राचीन शिल्प है। कभी कभी धरणेन्द्र के साथ पायी जाने वाली जिन की प्रतिमाएँ, ऐहोळे-बादामी के पाषाणों में तराशे गए शिल्पों के बहुत पहले की हैं। किंतु वे उपसर्ग (आपदा) के विवरण से रहित है। उपसर्ग के विवरण से रहित शिल्पकृतियाँ प्रारंभिक तथा असाधारण हैं। हालाँकि शिल्पाकृतियों से मौखिक तथा लिखित परंपरा का पूर्वानुमान हो जाता है। अब तक ऐसी सामग्री हमारे पास नहीं आयी है। एक अन्य प्रवृत्ति जिसमें कमठोपत्सर्ग के मूलभाव का प्रस्तुतीकरण और भी महत्वपूर्ण है और वह यह है कि यह प्रस्तुतिकरण विद्यमान जिनसेन पार्श्वभ्युदय (780) तथा गुणभद्र के उत्तरपुराण (898) के साहित्यिक संदर्भ तथा एलोरा के जिनगुफाओं तथा तमिलनाडु के इसी के समान शिल्पों से भी बहुत प्राचीन है। चालुक्य शिल्पकार बहुत ही कुशल, मौलिक तथा कल्पनाशील थे, जिन्होंने उपसर्ग के मूलभाव के प्रस्तुतीकरण का प्रतिनिधित्व किया जो समय के रहते आनेवाले शिल्पकारों के लिए जैसे एक उदाहरण ही बन गया जो इस प्रकार की विषयवस्तु पर काम कर रहे हैं। अनुपम वर्णनात्मक फलक ऐहोळे की गुफाओं के अंतःमंडपों की दीवारें तथा छतें गुफा निर्माताओं की सृजनात्मक दृष्टि शिल्पकारों के अधीन थी। मेणबसदि के दाहिने ओर के कक्ष के 7.39 मीटर (25 फीट) लंबी तथा 2.18 मीटर (7 फीट) ऊंची दीवार पर बनवाया गया वर्णनात्मक फलक अपनी तरह का एक उत्कृष्ट तथा अपनी अवधारणा का एक मात्र फलंक था। नीचे वाली शिल्पाकृति जिसमें लगभग 25 प्रतिमाएं हैं, जिसमें पार्श्व के जीवन की प्रमुख घटनाएँ चित्रित हैं, जो पार्श्व के जीवन का मुकम्मल चित्र ही उपस्थित करता है। यह शिल्प बहुत ही धुंधला एवं टूटा होने पर भी अभी भी उसको देखा समझा जा सकता है। पार्श्व से एकदम विरुद्ध मानवी जीवन के हर आनंद का उपभोग लेने वाली मन की अवस्था और फिर जो भी उसको प्रिय था उसको अस्वीकार कर, नग्नावस्था में ध्यान धारणा में लीन हो जाने वाला यह शिल्प निश्चित ही विशेष अध्ययन की माँग करता है। - पार्श्व सिंहासन पर पर्यंकासन (समभंग पद्मासन) में बैठकर आध्यात्मिक भव्यता को प्रसारित कर रहे हैं और उनकी बगल में दो चामरधारी हैं। उनके सिर के पीछे का प्रभामंडल तथा सिर पर का छत्र-त्रय अलौकिक प्रातिहार्य का सांकेतिक है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org